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गौशाला की रूनझुन

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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मेरे हृदय स्थल पर
मायूसी सी छा जाती है
तब घोर अंधेरा छाता है
जब रूनझुन की ध्वनि ना हो
जेठ महीने की तपन
भरी दुपहरी की क्षवरी
तन मन को झुलसाती है, तब
शीतल सा फव्वारा बन कर
घंटी की ध्वनि छा जाती है
मन मंदिर सा पुलकित हो जाता है
मुरझाया मन खिल जाता है
गर्वित होता मेरा जीवन
इस ध्वनि के उन्माद से
सांसो की लय चल पडती है
प्राणों में सुर छा जाता है,
कर लूं कुछ संभाषण इनसे
मेरा मन अकुलाता है
कूद कूद और उछल उछल
रहते है ये अब मस्त मग्न
इनकी रूनझुन की ध्वनि सुन कर
लब झंकृत हो जाता है
मंदिर की इन्हें घंटियों में
मेरा मन रम जाता है
कभी ओम कभी आमेन कभी
अमीन निकल आ जाता है !!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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