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तुम ब्रह्मज्योति हो

हंसराज गुप्ता
जयपुर (राजस्थान)

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मैं सूखा पत्ता हूँ, पतझड़ का,
तुम नये बसंत का नया कँवल,
मेरा परिचय खोने वाला है,
तुम बीजांकुर जड पौध नवल,
मैं सुर्ख तना, अब त्यक्तमना,
तुम मधु मधुकर शुक पिक अरू फल,
मैं आज शाम का ढलता सूरज,
तुम ऊषा भोर अरुणोदय कल,
मैं उलझी समस्या, बुझता दीपक,
तुम ब्रह्म-ज्योति हो, सबका हल,
मेरा जीवन, मैली चादर,
तुम अमृत, निर्झर का पावन जल,
हाथ पकडकर चढ़े शिखर,
तुम छांँव बनाओ, ठाँव सफल,
अंधक्षितिज, मैं पथिक त्राण का,
तुम पथ, ज्योति, किरणें उज्ज्वल,
मैं प्रतिबिंब, बिखरती, जर्जर कृति,
तुम अनुपम आभा बलराम संबल,
मैं ठहरा नीर, पीर हूँ गहरी,
तुम प्रबल प्रवाह शिव सत्य अटल,
मैं आतुर व्याकुल नम सिकताकण,
तुम्हें पाना हिम के शिखर धवल,
चट्टानें टूटी, अनुनादों से,
दीपक-राग रतन ठुमरी है,
उर में कितने तिमिर समेटे,
तब मोहन मूरत उभरी है,
मेरी राख से भस्म आरती,
तुम आर्त हृदय का पूजा-फल हो,
पिघलता हुआ हिमखंड प्रचंड मैं,
तुम फसल सींचता, मीठा जल हो,
ग्रह नक्षत्रों की दुनिया में,
होगा मेरा ठौर ठिकाना,
रात को नभ में देखा करना,
मद्धिम मद्धिम मोहक मुस्काना,
पथ उजला है, लक्ष्य सरल है,
चलने का क्यों जोश नहीं है?
तन मन हल्का, बोझ नहीं अब,
करना क्या, संतोष नहीं है,
मूरत गढने वाले पागल को,
होता कुछ भी होश नहीं है,
दर्द सहा पत्थर ने कितना,
किंचित उसका दोष नहीं है,
कृष्ण अर्जुन संवाद याद करे,
कान्हा का अनुरागी जो,
तरास दिया पैनी छैनी से,
आज पाप का भागी वो?
वीरान यह जीवन खालीपन है,
आशायें फिर भी होती हैं,
तेरे सुख सपने प्रेमभाव में,
आँखें भी रोकर सोती हैं.
जीते जी यदि याद करो तो,
बच्चों से मिलवा देना,
मर जायें तो श्राद्धपक्ष में,
बस ब्रह्मभोग करवा देना,
जिस आंगन में हम रहते थे,
वहाँ दीपक एक जला देना,
हमको एक आवाज लगाकर,
कव्वों को भोज खिला देना।

परिचय :-  हंसराज गुप्ता, लेखाधिकारी, जयपुर
निवासी : अजीतगढ़ (सीकर) राजस्थान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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