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अच्छे सत्कार्य

शांता पारेख
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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पर्यटन कई प्रकार के होते है। सबका उद्देश्य भी अलग होता है। यूँ तो बहुत बदनाम हुए है बाबा उनके आश्रमो ने बहुत गंदगी व दरिंदगी फैलाई। उससे अच्छे व सच्चे बाबा जी जनकल्याण की गतिविधियों से जुड़े थे उनका बहुत नुकसान भी हुआ। पर कहते है बादल आकाश को ढक के अंधेरा तो कर सकते है पर सूर्य को कौन निगल सकता है सिर्फ हनुमान, पर जो संत महात्मा कुम्भ में अपने डेरे डाल के देश विदेश के ज्ञान पिपासुओं को तृप्त करते है। उनके प्रताप को कोई आच्छादित नही कर सकता है। सदियों से चलने वाले मेले चार जगह लगते हैं। अर्ध कुम्भ भी लगते है। अन्य सारे पर्यटन को अलग करदे तो ये पर्यटन कितना बड़ा है कितना अर्थव्यवस्था को लाभ देता है। हां टेक्नोलॉजी बढ़ी है, पर इसरो के वैज्ञानिक भी लॉन्चिंग के पहले अपनी उत्तेजना पर काबू पाने अपने इष्टों को याद करते टीवी पे दिखाए गए थे। अपने परिजन को पूरे विश्वास से डॉक्टर को सौप देते है तो डॉक्टर भी घर से प्रेयर कर के निकलता है। विज्ञान कितना भी आजाये तो भी आस्था तो इस देश की अडिग ही है। हर बड़े कार्य से पहले पूजा रखी ही जाती है, विवाह हो या फैक्ट्री निर्माण, दूल्हे की गाड़ी के आगे नारियल गाड़ी के पहिये से कुचलवाने का सबने देखा है। ये सब हमारे संतो ने जीवित रखा है, उनके धाम है। उनके देश विदेश तक भक्त है जो उनके राष्ट्रीय समागम में आते है लाखो की भीड़ जुटती है, अनुशासन भी होता है सुंदर सात्विक भोजन व्यवस्था होती है अस्थायी टेंट व जनसुविधाएं की तैयारी जोर शोर से होती है। महीनों की तैयारी से एक समागम होता है इसमें प्रौढ़ तो होते ही है युवा भी होते है जो अपने लैपटॉप सहित आकर अपना व समागम का पूरा काम बहुत श्रद्धा से संभालते है। अब तो संतो ने उधर भी आश्रम बना लिए है। यूएई का तो सबने अभी अभी देखा ही है। सच्चे जैन संत वाहन का उपयोग नही करते है तो वे स्वयम नही जाते विदेश पर उनके भी कई श्रमण व स्वयं सेवक होते जी अधीत विद्वान होते व ब्रह्मचारी भी होते है बस महाव्रती नही होते पर ग्रहस्थ संत होते है, वे भी सुदूर जगह जाकर धर्म की जीवित ही नही पोषित भी करते है। फिर नेट ने तो यु ट्यूब ने संतो को अपने घर मे अच्छी खासी जगह देदी है कोरोना कीअनेक विशेषता में यु ट्यूब का बहुत ही अच्छा उपयोग किया। वृद्ध अकेले घर मे खूब सत्संग करते है।अगर कभी हम सोचे कि इस को अलग कर दे तो इकॉनमी में धड़ाम आएगा जैसा हर्षद मेहता के समय कैसा जलजला आया था। फाका मार भी ऐसे कामो में देता है कम ही सही। कहावत हैआबू जी री कोरणी न् राणकपुर जी रा थम्बा, आधी रोटी खाइजो ने राणकपुरजी जाईजो। मतलब पेट थोड़ा कॉटलो पर धार्मिक यात्रा जरूर करो। महाकाल का चढ़ावा कई गुना हो गया तिरुपति की तरह अब स्कूल कॉलेज डायलिसिस सेंटर, खुल जाएंगे। ये भी एक तरीका है कॉपोरेट हॉस्पिटल व स्कूल से मुक्ति का बस मंदिर का ट्रस्टी अग्रगामी सोच वाले हो नही तो ये ही कई बार दादा गिरी व धुंसबाज़ी करते है, सारे धन पे सांप की तरह कुंडली मार के बैठते है। ईश्वर इन को सद्बुद्धि दे व जनता के लिए अच्छे सत्कार्य हो।

परिचय : शांता पारेख
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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