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पारितोषिक

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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मेरे जाने के बाद,
मेरा ये प्रेम ये स्नेह
यादों मे सजाए रखना
मैं वहीं पारितोषिक हूँ,
जिसे पाने की चाहत में
खो दिया तुमने बहुत कुछ
खो रहे हो, समय, तन,
मन धन और बहुत कुछ
मैं तुम्हारी स्मृतियों में
किसी पहाड़ी जीव की तरह
कुलांचे भरता यहां वहां
विचरण करता रहूँगा ,
मेरी उपस्थिति तुम्हें राहों में,
गलियों,कूंचो में दिखाई देगी
तुमने तो सजाया था मुझे
अपने मुकुट के मान सा
औरों को ना हो पाया
कभी उसका भान सा
मेरे आंसुओं को खारा पानी
समझ झटका करते थे जो
उनकी सोच में मेरे आंसुओं
की मिठास बोओगे तुम
सोचता रहा उम्र भर तरसता रहा
प्रेम करुना, सम्मान को जिस,
मधुकर रिश्ता बनाओगे,
है विश्वास इस बात का !
जब मैं विदा लुंगी, लूँगा,
महसूस करोगे मुझे
किसी फूल सा,
महाकाया जिसने था
कभी कोई घर आँगन
मेरी याद की खुशबू से
सुवासित रहोगे हर पल,
मेरे जीवन का
उद्देश्य पूर्ण करोगे
मेरे जैसे अनगिनत को
जीने का संरक्षण दोगे,
इसी उम्मीद से अब मैं
विदा लेता हूँ, लेती हूँ,
जन जीवन मे प्रभु का
उपहार बन कभी ना कभी
तो बसूंगा, हृदय स्थल में!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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