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यादगार जन्मदिन

नितेश मंडवारिया
नीमच (मध्य प्रदेश)
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विदिशा अपना पांचवा जन्मदिन मनाने छुट्टियों में नानाजी के घर वाराणसी आयी हुई थी। जब वह धूल से खेलती तो माँ आकांक्षा उसे मना करती, वह दौड़ते हुए नानाजी के पास जाती और शिकायत करती देखिए नानाजी, माँ मुझे खेलने नहीं देती। नानाजी नाराजगी जताते कहते आकांक्षा! क्यों मना करती? खेलने दो। यह सुनकर विदिशा खुश हो जाती और खेलने निकल जाती। कभी मौसी प्रज्ञा के साथ बिल्ली के म्याऊं म्याऊं की नक़ल करती, तो कभी मामा नितेश और वैभव के साथ पकड़म पकड़ाई खेलती। तो कभी परनानी को कहती कहानी सुनाओ। तो कभी परनाना के कंधो पर जा बैठती। तो कभी नानी को कहती मंदिर घुमाने चलो। नानाजी ने शाम को भजन संध्या रखी, धूमधाम से विदिशा का जन्मदिन मनाया। इस प्रकार छुट्टियों के बीतते देर न लगी और जाने का दिन आ गया। घर से जाने वाले दिन वह कहने लगी नानाजी, आप भी मेरे साथ चलेंगे। उसका मन रखने के लिए नानाजी ने हां कह दिया। वह आश्वस्त थी नानाजी भी उसके साथ जा रहे है। जब सब लोग स्टेशन पहुंचे ट्रेन प्लेटफार्म पर लग चुकी थी। नानाजी प्लेटफार्म पर खड़े-खड़े उन लोगों से बातें कर रहे थे। वह बार-बार कह रही थी नानाजी अंदर आ जाइए। वह किनारे वाली सीट पर बैठी डिब्बे से बाहर हाथ निकाले नानाजी की अंगुली पकड़े हुई थी। गाड़ी सरकने लगी थी। खिलौना उसके हाथ में देते हुए नानाजी ने कहा विदिशा, बाद में तुम्हारे पास आ जाऊंगा और बहुत मुश्किल से नानाजी ने अपनी अंगुली छुड़ाई। उसकी आंखों में आंसू थे। उसके नाराजगी भरे अपनत्व के शब्दों ने नानाजी को भाव विह्वल कर दिया और उनकी आंखें भी नम हो गईं। आकांक्षा ने फोन कर बताया विदिशा बहुत दुखी थी। घंटों गुमसुम बैठी रही, किसी से बात नहीं की। नाना नातिन का प्यार देख पिता आशीष और दादा-दादी भाव विभोर हो गए उनकी भी आँखें नम हो गयी। नानाजी ने अनुभव किया बच्चों के लिए अपनों का साथ उपहार से ज्यादा प्यारा होता है।

परिचय :- नितेश मंडवारिया
निवासी : नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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