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अनसुलझी अजब पहेली

हंसराज गुप्ता
जयपुर (राजस्थान)

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कौन भटकता, घन जिसको?
गगन कहाँ? कोना ना मिला!
वह मिटी, धरा की प्यास बुझी,
बगिया में सुंदर फूल खिला,
सुमन देख, इठलता कौन?
थपकी दे, लोरी गाता है,
चुप रह चलते-हलके हलके,
पलकन में मंद मुस्काता है।
कौन बिछड़ के, तेज तपन से,
फिर फिर बादल बन जाता,
फूल कहीं मुरझा जाए! वह
उमड-घुमड कर अकुलाता,
बार-बार गिरि से टकराकर,
कौन स्वयं मिट जाता है?
दिखता है, जब फसल उगाये,
फसल पके, कित जाता है?
कौन है वो? कुछ भेद बताऊं,
थोड़ा सा, संकेत बताऊं?
ममता की क्षमता से निर्मल,
दूध की सरिता बहती है,
लल्ला बनकर पलना झूलें,
देवों के मन में रहती है,
अंजनी थी, हनुमान के लिए,
राम की कौशल्या, हरि की जसोदा,
बोलो जल्दी बोलो क्या तुमने सोचा?
वह नहीं होती तो मैं नहीं होता?
सारे मिलकर काम करें जो,
कर लेती थी एक अकेली,
पूरी उम्र समझ ना पाया,
माँ, अनसुलझी अजब पहेली।

बेटी बहन भी बहू बनेगी,
माँ बनकर फिर सास,
स्वाभाविक संस्कार सनातन,
ये ही चौखट की आस।
पहले उठती, बाद में सोती,
सबकी सुनती, सबकुछ झेली,
थकी ना हारी, सबकी प्यारी,
बूआ बहनों की निकट सहेली,
निजरें रखकर, नजर उतारे,
कुछ भी खा ली,हँसकर रह ली,
पूरी उम्र समझ ना पाया,
माँ अनसुलझी अजब पहेली।

मैंने तुझको कष्ट दिये पर,
थी आशीष, तुम्हारी गहरी,
समझाया तब, समझ ना आया,
समझा तो, सूनी क्यों देहरी?
सुख सपनों की बेल हरी हो,
अर्घ्य सूर्य का, किरण हो पहली,
पूरी उम्र समझ ना पाया,
माँ, अनसुलझी अजब पहेली।।

परिचय :-  हंसराज गुप्ता, लेखाधिकारी, जयपुर
निवासी : अजीतगढ़ (सीकर) राजस्थान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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