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जीवन का सत्य

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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जीवन का तो अंत सुनिश्चित,
मुक्तिधाम यह कहता है।
जीवन तो बस चार दिनों का,
नाम ही बाक़ी रहता है।।

रीति, नीति से जीने में ही,
देखो नित्य भलाई है।
दूर कर सको तो तुम कर दो,
जो भी साथ बुराई है।।
नेहभाव ही सद्गुण बनकर,
पावनता को गहता है।
जीवन तो बस चार दिनों का,
नाम ही बाक़ी रहता है।।

मुक्तिधाम में सत्य समाया,
बात को समझो आज।
साँसें तो बस गिनी-चुनी हैं,
मौत का तय है राज।।
बड़ा सफ़र है मुक्तिधाम का,
मोक्ष को तो जो दुहता है।
जीवन तो बस चार दिनों का,
नाम ही बाक़ी रहता है।।

रहे मुक्ति की चाहत सबको,
सच्चाई को जानो।
मोक्ष मिले यह जीवन जीकर,
बात समझ लो, मानो।।
कितना भी हो बड़ा राज्य पर,
कालचक्र में ढहता है।
जीवन तो बस चार दिनों का,
नाम ही बाक़ी रहता है।।

मुक्तिधाम तो बड़ा तीर्थ है,
सबको जाना होगा।
मौत का नग़मा अनचाहे ही,
सबको गाना होगा।।
समझ न पायें भले आज हम,
काल नित्य पर बहता है।
जीवन तो बस चार दिनों का,
नाम ही बाक़ी रहता है।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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