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अवध में राम आये हैं

उषाकिरण निर्मलकर
करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़)

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सुमंगल गीत गाओ तुम, अवध में राम आये हैं।
सुमन-श्रद्धा लुटाओ तुम, अवध में राम आये हैं।

सकल ब्रम्हांड के स्वामी, विधाता वो जगत के हैं।
चरण उनके पखारो तुम, अवध में राम आये हैं।

सहज, सुंदर, सलोना है, मेरे भगवान का मुखड़ा,
कि मन-मंदिर बसाओ तुम, अवध में राम आये हैं।

नयन कजरा, तिलक माथे कि कुंडल-कान धारे हैं,
नजर अब तो उतारो तुम, अवध में राम आये हैं।

सदा ही भाव वो देखे, सभी स्वीकार है उनको,
कि शबरी बन खिलाओ तुम, अवध में राम आये हैं।

समझते हैं, सभी के कष्ट, वो पालक-पिता जग के,
सभी दुख को मिटाओ तुम, अवध में राम आये हैं।

वचन की लाज रखनें को, गये चौदह बरस वन में,
पुकारो लौट आओ तुम, अवध में राम आये हैं।

कि लक्ष्मण जानकी है संग, अब कर्तव्य के पथ पर,
पवनसुत जी पधारो तुम, अवध में राम आये हैं।

दया, धीरज, क्षमा, साहस, सदाचारी कि मर्यादा,
चरित अपना सजाओ तुम, अवध में राम आये हैं।

सिया के राम, रघुनंदन, रमण, राधव, अभय दाता,
कि मन से जो पुकारो तुम, अवध में राम आये हैं।

अमर-गाथा लिखा जिसनें, नमन है दास-तुलसी को,
सफल जीवन बनाओ तुम, अवध में राम आये हैं।

लिया जो नाम उनका तो, उसे भव-पार करते हैं,
कि जयकारा लगाओ तुम, अवध में राम आये हैं।

परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर
निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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