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फिर आ जाओ एक बार

डाँ. बबिता सिंह
हाजीपुर वैशाली (बिहार)
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हे वीर पथिक, हे शुद्ध बुद्ध!
निर्मित तुमसे नवयुग का तन,
बुन के संस्कृत का महाजाल,
तुम फिर आ जाओ एक बार!

जग पीड़ित हिंसा से हे लीन
भू दैन्य भरा है दीनों से
पावन करने को हे अमिश,
तुम फिर आ जाओ एक बार!

चेतना, अहिंसा, नम्र, ओज
तुम तो मानवता के सरोज
तंत्रों का दुर्वह भार उठा
तुम फिर आ जाओ एक बार!

हे अमर प्राण! हे हर्षदीप !
जर्जरित है भू जड़वादों से,
लेकर यंत्रों का सुघड़ बाण,
तुम फिर आ जाओ एक बार!

तुम शान्ति धरा के सूत्रधार,
रणवीरों के तुम हो निनाद
युग-युग का हरने
विपज्जाल,
तुम फिर आ जाओ एक बार!

नवजीवन के परमार्थ सार,
इतिहास पृष्ठ उद्भव प्रमाण,
भारत का भू है बलाक्रांत,
तुम फिर आ जाओ एक बार!

हे सदी पुरुष, हे स्वाभिमान!
तुम हो भारत के अमित प्राण,
इस धरा का हरने परित्राण,
तुम फिर आ जाओ एक बार!

परिचय :- डाँ. बबिता सिंह
निवासी : हाजीपुर वैशाली (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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