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धर्म

शैल यादव
लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज)
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धार्यते इति धर्म:सर्वमान्य परिभाषा है धर्म की,
धर्म में प्रमुखता है सर्वत्र बस केवल कर्म की।

सद्कर्मों का अभाव जहाॅं वहाॅं कोई धर्म नहीं,
धर्म हीन मानवों में रह सकता कोई मर्म नहीं।

इस संसार में मानव का सर्वोच्च धर्म है मानवता,
किंतु कुछ वर्षों से हावी‌ है सारे संसार में दानवता।

जिसके हृदय में प्राणियों हेतु नहीं है कोई निष्ठा,
दानवता की परिभाषा है वह नीचता की पराकाष्ठा।

उच्च‌ मानव कुल में जन्म लेकर कार्य न‌ हों नीच,
सद्गुणों सद्व्यवहारों की एक आदर्श रेखा खींच।

संतानों की उत्तरोत्तर प्रगति में पिता का ही धर्म है,
खेती के उत्पादन में केवल अपना‌ कठिन कर्म है।

सभी लोग सुखी रहें ऐसी हो सबकी कामना,
अनिवार्यतः किसी से नहीं होगा दुःख का सामना।

इस धरा पर हैं अनेक जातियाॅं और धर्म भी,
सबके भिन्न कर्म हैं और सबके भिन्न मर्म भी ।

अपने कर्तव्यों का निष्ठा पूर्वक निर्वहन भी धर्म है,
पर दुखद छल कपट द्वेष का व्यवसाय बहुत गर्म है।

धर्म ही सिखाता है हम सबको एक रहना,
जो उचित हो सबके लिए वही कार्य करना।

मान रख लिया है जो सबके मर्म का यहाॅं,
ज्ञान रख लिया है वो सर्व धर्म का यहाॅं।

परिचय :- शैल यादव
निवासी : लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज)
सम्प्रति : शिक्षक- जीआईसी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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