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स्वागत शिशिर का

विवेक नीमा
देवास (मध्य प्रदेश)

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पौष माह की श्वेत धुंध में
आओ करें स्वागत शिशिर का
आँख मिचौली खेल रहा जो
घन में लुक-छुप रहे मिहिर का।

धवल गिरि के शिखरों पर भी
वृक्ष लताएँ सिकुड़ी सिमटी
खेत, वाटिका उपवन में भी
पत्तों पर है शबनम लिपटी।

कोहरे की चादर में देखो
छुप कर बैठा है प्रभात भी
सूरज के डूबते ही देखो
ठिठुर-ठिठुर ढल रही रात भी।

तिल गुड़ की मिठास से देखो
महक उठी रसोई सभी की
दिनभर पसरी दिखती देखो
बिस्तर में रजाई सभी की।

मालकोंस के गूंज रहे स्वर
सिगड़ी इठलाती जलकर
चौपालों पर अलाव जले
ताप रहे तन जन मिलकर।

कुदरत के आँचल में भरा
षड ऋतुओं का खजाना
जीवन को सुंदरता देता
इन ऋतुओं का आना जाना।

परिचय : विवेक नीमा
निवासी : देवास (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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