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जिंदगी कब बेमानी हो जाये

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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उम्मीद पाल हर
कोई चलता है
कि जिंदगी
सुहानी हो जाये,
कब किसे क्या पता
जिंदगी कब
बेमानी हो जाये।

मत कर उम्मीद कि
नफ़रत पालने वाले
दिल से गले लगाये,
क्या पता
जिंदगी कब
बेमानी हो जाये।

उलझा हुआ है कौन
कब कितनी झंझावतों में,
कहां पिस रह जाये
किस किस की अदावतों में,
संबल की आस वाले
जब लूटने लगे भरम,
सितम भगाने वाले
खुद बन जाये सितम,
मौत ही पक्का जब
निशानी हो जाये,
क्या पता
जिंदगी कब
बेमानी हो जाये।

फरेब संग रहकर
जब जटिल जाल बुने,
दिल का हरा आंगन
लगने लगे जब सुने,
अनुराग और प्रेम
जब लगाने लगे चुने,
अहसास नहीं होता
अपने अपनों को भुने,
अपनों से अपनेपन का
विश्वास जब खो जाये,
क्या पता
जिंदगी कब
बेमानी हो जाये।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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