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अनाथ बच्चा

देवप्रसाद पात्रे
मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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अनाथ बच्चा बेसहारा हूँ।
जीवन के सफर में हारा हूँ।।
जब भूख लगे न मिले भोजन
भूख की अग्नि में जले तनमन
बिगड़ी हालात का मारा हूँ।
जीवन के सफर में हारा हूँ…

मह-मह करती होटल में
बनती रोटियाँ झाँकता हूँ।
इस पापी पेट की आग बुझाने
हरदम मौके ताकता हूँ।।
कहते हो लोफर आवारा हूँ
जीवन के सफर में हारा हूँ…

दे दो न दीदी भैया कहकर
हर दिन हाथ फैलाता हूँ।
मिले भोजन कभी मिले नहीं
पानी से प्यास बुझाता हूँ।।
असहनीय दुखों का पिटारा हूँ।
जीवन के सफर में हारा हूँ…

पढ़ना चाहूँ मैं भी लेकिन
हाथ में कलम न किताब है।
ढूंढ रहा सुकून का जीवन
बस भूख का हिसाब है।
कूड़े करकट सा किनारा हूँ।
जीवन के सफर में हारा हूँ।।

रोटी की खातिर घूमता रहता।
हरदम मैं मारा जाता हूँ।
होटल-गलियों स्टेशनों
चौराहों में दुत्कारा जाता हूँ।
कड़वा पानी सा खारा हूँ..
जीवन के सफर में हारा हूँ।।

परिचय :  देवप्रसाद पात्रे
निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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