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नव वर्ष

डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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लो फिर आ गया है
नव वर्ष,
दौड़ता हुआ संकल्पों
की गर्द से ढका।
पहाड़ी प्रदेशों में
भेड़ चराता हुआ,
सड़क किनारे टुकड़े लोहे
प्लास्टिक के चुनता।
भीड़ भरे चौराहे पर
वाहनों की रेलमपेल
में कटोरी थामें,
चंद सिक्कों की
खनक से मुस्काता।

लो फिर आ गया है
नव वर्ष,
आंखों में जीजिविषा भरे
मेहनत से सरोकार
साइकिल रिक्शा पर
पसीने से लथपथ
पैडल मारता।
पतासी के ठेले पर
जीरा नमक
संग अपनी
जठराग्नि से लड़ता।

लो फिर आ गया है
नव वर्ष,
खेतों की मेड़ों से,
हरी दूब पर
पूस की ठंड
से विकल,
टखनों तक
पानी में डूबा।
उम्मीद को
पगड़ी में बांधे,
रात गठरी
सा ठिठुरता।

लो फिर आ गया है
नव वर्ष,
दृढ़ निश्चय,
कृत संकल्पित हो।
कुछ वादे,
कुछ इरादे थामें।
कच्ची बस्ती
से होता हुआ,
मध्यम वर्ग के
गलियारों से
निकलकर
सरकारी भवनों में।

परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार)
निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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