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मधु मोह कल्पना नश्वर है

बृजेश आनन्द राय
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
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मैंने सोचा कल्पान्तर में
तेरा- मेरा प्यार अमर है।
तुमने जीवन में समझाया;
‘मधु-मोह-कल्पना नश्वर है’।।

‌अद्भुत अनन्त आश्चर्य भरी
जब प्रथम बार सम्मुख आई।
मन ने चाहा बस तुम कह दो;
‘हे प्राण! तुम्ही हो सुखदाई।
मम-आत्मरूप, आरंभ-शुभम्
जीवन की तुम अभिलाषा।
तुम हो प्रेम-प्रणय का अम्बर;
मैं धरा-लोक की परिभाषा।’
कुछ दिन तो सब सच लगा मुझे:
‘ना हम-तुममें कुछ अन्तर हैं।’
तुमने जीवन में समझाया;
‘मधु-मोह कल्पना नश्वर है’।।

निषिद्ध किया ना तूने कभी;
जो कुछ भी ईच्छा थी मेरी।
रूप- रंजना अभिसारों में;
हे समवय! सम- ईप्सा तेरी।
प्रियं दर्शिनी, प्रियं भाषिणी
गौर-वदन, नयना सुखकारी।
तृप्ति-अमरता-आलिंगन-की;
भू-लोक-विस्मृता आभा री!
चन्द-वर्ष सब ऐसे बीता
जैसे, ‘बरसे पावस ईसर है’।
तुमने जीवन में समझाया;
‘मधु-मोह-कल्पना नश्वर है’।।

सूरज चाँद सितारों के सँग
सुबह-सॉंझ दिन बीत रहा था।
खिलती-कलियों अरु भौरों संँग
मिलन-उद्धरित-गीत रहा था।
तभी समय ने मोड़ लिया कुछ
विवश हुए से दूर हुए तुम।
मैं सहसा कुछ समझ न पाया …
‘सदा-सदा को दूर हुए तुम।’
मिले कभी जब, लगा हृदय का-
‘वह-स्पंदन’, अब तो मन्थर है।
तुमने जीवन में समझाया;
‘मधु मोह कल्पना नश्वर है’।।

मैं रूप-रंग गुण की स्मृति में
लुब्ध रहा करता हूँ अब भी।
मन-हृदय न क्षण भर रिक्त रहा;
सम्मर्द-एकान्त या कब-भी।
पर्वत-नदी-कुंज में विम्बित;
दिशि-अम्बर, सागर-कानन में।
‘वर्षा-बूँद’, इन्द्र-धनु-रचिता;
सौन्दर्य-प्रकृति के प्रांगण में।
तुम्हें ढूंढते पाया मैंने
‘यह संसार ब्रह्म-विस्तर है’।
तुमने जीवन में समझाया
‘मधु-मोह-कल्पना नश्वर है।।’

परिचय :-  बृजेश आनन्द राय
निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र.द्वारा शिक्षा शिरोमणि सम्मान २०२३ से सम्मानित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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