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गड्ढे की छलांग (ताटंक)

विजय गुप्ता “मुन्ना”
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए।
दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए।

साहस मेहनत छलांग धरो, अपनी क्षमता बढ़ जाती।
बुरा दूसरों का किए बिना, लक्ष्य भेदना सिखलाती।
अनुभव बिन उद्योग संचालन, नई राह में लीन हुए।
अब शोख शर्मीला बच्चा कहे, दुनियादारी जीत गए।
गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए।
दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए।

गड्ढा खोदने में जो तल्लीन, उनके पास समय कम हो।
बाधक बनने में खो देते, जो संस्कार जरूरी हो।
उनके घर की कलह कहानी, यत्र-तत्र गम गीत नए।
बचपन से रहे कलंक ग्रस्त, अब ज्यादा ही दीन हुए।
गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए।
दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए।

स्पर्धा कारोबार के स्वामी, भाग्य से बहुत कमाते।
हमने सुने कुछ ऐसे बोल, वो सोना चना चबाते।
जागीर लगाम पे वश नहीं, महल मकान पसीज गए।
संपदा सम्मान के बड़े देख, अंगुलियां दांत खीज गए।
गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए।
दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए।

घूरे से सोना उपजा तो, आलू से बनता सोना।
कर्म व्यवहार बने धारणा, घर समाज हँसना रोना।
जैसे भी संपदा आती हो , कबाड़ जुगाड़ रीत गए।
विजय खातिर गड्ढा खोदा, गुमे मुन्ना’ को जान गए।
गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए।
दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता “मुन्ना”
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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