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नासमझ बेटा

सीमा रंगा “इन्द्रा”
जींद (हरियाणा)

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मात-पिता की बात मान लो, नही पड़े दुख सहना,
समझा- समझा हार गए क्यों, नहीं मानते कहना,
कहने बैठो गर कुछ इनको, कहे नासमझ हमको,
भूल रहे जीवन से शिक्षा, दूर करे है तमको।

इनकी बातें बड़ी निराली, चकित सभी को करती,
सुने नहीं है बात बड़ों की, देख इन्हें माँ डरती,
जुबां चलाएं सबके आगे, करते हैं मनमानी,
घर में अपना रौब जमा कर, करते है नादानी।

दो आखर को पढ़ कर समझे, खुद को बेशक ज्ञानी।
पड़ जाए जो बोझ उठाना, याद करे वो नानी,
फिर मत कहना नहीं समझ थी, हमें नहीं समझाया,
निकल गया जो समय हाथ से, लौट कहो कब आया।

बन जायेगा जीवन तेरा, सुनो ध्यान धर बातें,
तेरे ही सुख खातिर जागे, हैं हम कितनी रातें,
केवल सच ही जीवन नैया पार करेगा तेरी,
इसीलिए बेटा बातों पर, अमल करो बिन देरी

परिचय :-  सीमा रंगा “इन्द्रा”
निवासी :  जींद (हरियाणा)
विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया।
उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से प्रशंसा पत्र, दैनिक भास्कर से रक्तदान प्रशंसा पत्र, सावित्रीबाई फुले अवार्ड, द प्रेसिडेंट गोल्स चेजमेकर अवार्ड, देश की अलग-अलग संस्थाओं द्वारा कई बार सम्मानित बीएसएफ द्वारा सम्मानित। देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में रचनाएं प्रकाशित,कई अनपढ़ महिलाओं को अध्यापन।
प्रकाशन : सतरंगी कविताएं, काव्य संग्रह।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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