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मुट्ठी भर राख

डॉ. बीना सिंह “रागी”
दुर्ग छत्तीसगढ़

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नीले अंबर की
लालिमा देखकर
भाव से भाव का
हम समर्पण करें
सूरज उगते को
सब ने नमन है किया
डूबते को जी आओ
नमन हम करें
अभिलाषा उत्कंठा
धन संपदा
छल प्रपंच छद्म
और उच्च शृंखलता
अंतर्मन का ए मन
मालिन सा हूआ
शक्ति भक्ति प्रेम
कर्महीन सा हुआ
हर्षिता द्वार पे
आ खटखटाती रही
नवल रश्मियों का आओ
आचमन हम करें
नीले अंबर की
वक्त अंजुरी से
फिसलते गए
हाथ में काल के
हम सिमटते गये
सत्यता सहजता
दिव्यता छोड़कर
चादर आडंबर
का हम ओढ़े रहे
कदम दर कदम
राह झूठ की त्याग कर
सत्य पथ का चलो
अनुसरण हम करें
नीले अंबर…
बदचलन ख्वाहिशें
उफान मारती रही
सतरंगी लालसाएं
तूफान लाती रही
बेदर्द धड़कने
इतराते रहे
रूह निगोड़ी सांस
संग मुस्कुराती रही
मुट्ठी भर राख
का सब खेल है
जल अंजुरी में ले
तर्पण हम करें
नीले अंबर …

परिचय :- डॉ. बीना सिंह “रागी”
निवास : दुर्ग छत्तीसगढ़
कार्य : चिकित्सा
रुचि : लेखन कथा लघु कथा गीत ग़ज़ल तात्कालिक परिस्थिति पर वार्ता चर्चा परिचर्चा लोगों से भाईचारा रखना सामाजिक कार्य में सहयोग देना वृद्धाश्रम अनाथ आश्रम में निशुल्क सेवा विकलांग जोड़ियों का विवाह कराना
उपलब्धि : विभिन्न संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मान द्वारा सम्मानित टीवी चैनल में समय-समय पर कविता पाठ का प्रसारण अखिल भारतीय मंच में प्रस्तुति कई साझा संकलन और पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित


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