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लैंसडाउन की उॅचाइयों पर

बृजेश आनन्द राय
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
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लैंसडाउन की
उॅचाइयों पर-
टहलते हुए…
‘शीतकालीन
ठंडी-तीव्र हवाओं
और सख्त चट्टानों के बीच
ऊर्ध्व-वृक्षों की छाया तले
दोपहर से तिरछे पड़ते
सूरज की छुट-पुट
किरणों के बीच-
लहराते केशों के बीच
मूर्तमान गौर वर्ण
का ‘श्वेत-फूल’,
दृष्टि निच्छेपित
थोड़ा-नीचे पथ पर
सखियों संग मुस्क्याता-
अपनी श्वेत-दंत-प्रकाशित-
लाल होठों की
पंखुड़ियों के बीच-
अंजाने ही लहराता है
कौमार्य की लहर!’
हृदय वहीं रुक जाता है..
एक युवा-यात्री,
ठिठक-ठिठक-कर
अपार आभा से
गुजर जाता है…
-घायल होकर
ताउम्र के लिए…!
-बस इक मुस्कान
की याद के साथ…
इक लम्बी ज़िन्दगी
बीत जाती है…
-नहीं बीतती है उस
मुस्कान की याद…!
….नहीं लौटना होता है
कभी उन पर्वतों पर…
यह जान-बूझकर कि
न वह फूल स्थिर होगा
न वह मुस्कान,
न जाने ‘समय-ने’
उस कुॅआरे फूल को-
किस जगह ले जाकर…
प्रकृति के किस
अंजाम के लिए गुजरते
हुए छोड़ा होगा…
…किसी न किसी
मजबूरियों के बीच…!
जैसे वह (पथिक)
गुजरता रहा है
अब तक की-
बढ़ते फिर ढलते…
अपनी देह पर अंकित होते-
समय की मजबूरियों के साथ..!!

परिचय :-  बृजेश आनन्द राय
निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र.द्वारा शिक्षा शिरोमणि सम्मान २०२३ से सम्मानित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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