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मिलकर दीप जलायें 

डॉ. सत्यनारायण चौधरी “सत्या”
जयपुर, (राजस्थान)
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आओ सभी मिलकर दीप जलायें
इस दीपावली नवदीप जलायें ।
जो ज्ञान का दे प्रकाश,
चलो ज्ञानदीप जलायें।
जो जाति-पाति का मिटा दे अंधेरा,
एक ऐसा धर्मदीप जलायें ।
जो अशुभ रूपी तम को हर ले,
इक ऐसा शुभदीप जलायें।
विज्ञान के दम पर हो भारत का नाम,
एक ऐसा विज्ञानदीप जलायें।
जनतन्त्र ना बदले, भीड़तन्त्र में,
इक ऐसा जनदीप जलायें।
चहुँ और हो प्रेम और सौहार्द,
एक ऐसा प्रेमदीप जलायें।
जन-जन हो प्रफुल्लित,
इक ऐसा हर्षदीप जलायें।
शूरवीरों की शहादत को ना भूलें,
चलो एक शौर्यदीप जलायें।
संस्कृति का परचम फहरे जग में,
एक ऐसा संस्कृतिदीप जलायें।
भारतभूमि का हो यशोगान,
इक ऐसा यशदीप जलायें।
मिट जाए भेद ग़रीबी-अमीरी का,
एक ऐसा समदीप जलायें।
अक्षर के ज्ञान से हों सभी परिचित,
इक ऐसा साक्षरदीप जलायें।
पर्यावरण को रखना है सुरक्षित,
एक ऐसा पर्यावरणदीप जलायें।
भाषा हो एक अपने देश की,
आओ एक हिन्दीदीप जलायें।
अधिकारों के लिए रहें सजग हम,
इक ऐसा अधिकारदीप जलायें ।
देश के प्रति कर्तव्य रहें याद हमेशा,
चलो एक कर्तव्यदीप जलायें।
नारी की महिमा को ना होने दें खंडित,
एक ऐसा नारी सम्मानदीप जलायें।
अन्याय न सहें और न होने दें,
आओ इक न्यायदीप जलायें।
दुःख का ना रहें नामोनिशान,
आओ मिलकर सुखदीप जलायें।
वापस लौटें वसुधैवकुटुम्बकम् पर,

इक ऐसा विश्वदीप जलायें।
मातृभूमि पर कर दें तन-मन-धन अर्पण,
चलो एक समर्पण दीप जलायें।
आओ इस दीपावली सब मिलकर,
इक नवप्रभात का नूतनदीप जलायें।

परिचय :- डॉ. सत्यनारायण चौधरी “सत्या”
निवासी : जयपुर, (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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