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श्रम साधना

डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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चिमनी की टिमटिमाती रोशनी में रामू चटनी के साथ बाजरे की रोटी का कोर मुंह में चबाते हुए पत्नी से शिकायत भरे लहजे में कहा – ‘यह लगातार तीसरा महिना है, जिसमें हमारी बनाई ईंटों में ठेकेदार ने कमी निकालकर पैसे काट लिए’ गौरी मेरे समझ में नहीं आता, हमारे बाद आकर भट्टे पर लगी भंवरी की ईंटें हमारी बनाई ईंटों से अच्छी कैसे हो सकती है।
गौरी चूल्हे पर रोटी सेंकतीं हुई अपने पति की बातें बड़े इत्मीनान से सुन रही थी। वो फिर खीझ और झुंझलाहट से बोला, तुझे रोज कहता हूं गारा (गीली मिट्टी) अच्छी तरह मिलाया कर लेकिन तू मेरी सुनतीं कहां है, अब देख सारा पैसा कट गया, बैंक की किस्त फिर बाकी रहेगी, बैंक का ब्याज दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है।
रामू फिर बोला ‘ठेकेदार भंवरी की ईंटों का पूरा भुगतान किया है, वो कह रहा था ‘भंवरी गारा अच्छी तरह मिलाती है इसलिए उसकी ईंटें बहुत अच्छी बनती है। और एक तू है जो ऐसा गारा मिलाती है।’
बहुत देर से पति का उलाहना सुन रही गौरी आखिर में कांपती सी आवाज़ में बोल उठी….”ईंटें तो मेरी भी अच्छी हो जायेगी, मेरे द्वारा बनाया जा रहा गारा भी मुलायम रहेगा मगर… गौरी आगे नहीं बोल पाई, उसने कांपते होंठ दांतों से दबा लिए। रामू कुछ गुस्से में बोला… मगर क्या, बोल मगर क्या….
गौरी – “मगर पिछले तीन महीने से ठेकेदार की कोठरी से जो बुलावा आ रहा, जिस पर भंवरी जाती है, मुझे भी जाना पड़ेगा।” इतना कहकर गौरी फूट-फूटकर रोने लग गई। यह सुनते मानों रामू पर वज्रपात हो गया हो, वो भावशून्य हो कर गौरी के दोनों हाथ पकड़ लिया और बोला – “नहीं गौरी, नहीं। मुझे माफ़ कर दें। हम अन्य स्थान पर चलकर श्रम साधना कर लेंगे लेकिन अब यहां काम नहीं करेंगे। मैं सुबह ही इस दलदल से तुझे बाहर ले चलूंगा। मैं तेरे काम में कमी निकालता रहा, मुझे माफ़ कर दें गौरी! मुझे माफ़ कर दें।

परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार)
निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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