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उजड़ जाती जिंदगी

संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)
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शराब क्या
होती है ख़राब
कोई कहता गम
मिटा ने की दवा
जिंदगी में कितने गम
और कितने ही कर्म
दोस्तों की शाम
की महफ़िल
जवां होती ,हसीं होती
बड़े दावे बड़ी
पहचान के दावे
सुबह होते हो
जाते निढाल
रातो को राह
डगमगाती
जैसे भूकंप आया
या फिर कदम लड़खड़ाते
हलक से नीचे उतर कर
कर देती बदनाम
जैसे प्यार में
होते बदनाम
शराबी और दीवाना
एक ही घूमती
दुनिया के तले
मयखाने करते
मेहमानों का स्वागत
जैसे रंगीन दुनिया
की बारात आई
तमाशो की दुनिया में
देख कर हर कोई
हँसता/दुबकता
दारुकुट्टिया
नामंकरण हो जाता
रातों का शहंशाह
सुबह हो जाता भिखारी
बच्चे स्कूल जाते
समय पापा से
मांगते पॉकेट मनी
ताकि छुट्टी के
वक्त दोस्तों को
खिला सके चॉकलेट
फटी जेब और
खिसयाती हंसी
दे न पाती और
कुछ कर न पाती
बच्चों के चेहरे की
हंसी छीन लेती
इसलिए होती
शराब ख़राब
सुनहरे ख्वाब दिखाती
किंतु पुरे ना कर पाती
डायन होती है शराब
पुरे परिवार को खा जाती
और उजड़ जाते
जिंदगी ख्वाब।

परिचय :- संजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)

शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच इंदौर (म.प्र.)
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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