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घर को घर ही बनाएं

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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स्वर्ग बनाने से अच्छा है
घर को घर ही बनाएं,
मिथ्या स्वर्ग-नरक
में न उलझाएं,
सिर्फ बेटी में ही
दोष न देखें,
उनकी भावनाओं
को भी सरेखें,
घर को मकान ही
रहने देने का जिम्मेदार
नशेड़ी बेटा भी हो सकता है,
लालची भाई भी
सुख शांति का
धनिया बो सकता है,
बहू से कुढ़ती-नफरत
करती सास भी
घर का माहौल
बिगाड़ सकती है,
उच्छलशृंख ननदें
संबंध उखाड़ सकती है,
संयुक्त परिवार
की बेटी भी
बहू बन एकल
परिवार खोजती है,
एकता मधुरता को
तह तक नोचती है,
घर सबसे मिलकर
बनता है,
तब मुखिया का
सीना तनता है,
दहेज शब्द
घर का नहीं
धनलोलुपों के
स्वार्थ का नाम है,
ये अकड़ दिखा भीख
मांगने का काम है,
घर में तनाव
लेकर न जाएं,
सभी अपनी
जिम्मेदारी उठाएं,
मिलजुलकर समस्याओं
का समाधान खोज
घर को घर ही बनाएं।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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