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बुढ़ापा

संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)
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जिंदगी का सच
सुबह आईने में देखा
खुद ही का चेहरा
कितना बदल चूका
मन के भाव आज जवान
चेहरे पड़ी झुर्रियां को
ढांकने की कोशिश
बालो को काला करके
युवाओं की होड़ में
शामिल होने की ललक में
थक चुके कई इंसान
ऐसा लगता बुजुर्गी का
मानो कोई इम्तिहान हो
आवाज में कंपन
घुटनो में दर्द
मानों सब खेल मुंह
मोड़ चुके
बतियाने को रहा गया
अनुभवों का खजाना
और फ्लेस बैक यादों का
आईने में अकेला
निहारता चेहरा
और बुदबुदाता
सभी को तो बूढ़ा होना ही
एक न एक दिन
युवा बात करे
पल भर हमसे
भागदौड़ की दुनिया से
हटकर
मन को सुकून
मिल जायेगा
अकेले बतियाने और
आईने में चेहरे को देखकर
सोचता हूँ, बुढ़ापा
क्या ऐसा ही आता है।

परिचय :- संजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)

शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच इंदौर (म.प्र.)
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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