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सत्ता की गलियारों में

हितेश्वर बर्मन
डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)
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सत्ता की गलियारों में
आहट नहीं होती है
बिना लड़े गुलामी से
राहत नहीं मिलती है
हर फूल सिर्फ कीचड़ में
ही नहीं खिलती है
रात के अंधेरी साया के
बाद ही सुबह होती है
आत्मविश्वास को
अहंकार मत बनने दे !
पैसा रास्ते को सिर्फ
आसान बनाती है
नतीजे से पहले जीत
का दावा ना कर
समय का रेत
धीरे-धीरे खत्म हो रहा है
जरा रूक जा
इंतजार करना सीख
जीत का इतना
बेसब्री से इंतजार न कर !
अपने दिल को पत्थर
सा मजबूत बना ले
हार को भी हँसकर
सहन करना सीख
सत्ता की गलियारों में
सिर्फ तू अकेला ही नहीं है
अपने पीछे भी मुड़कर देख ले,
बड़े ही खामोशी से तेरा
पीछा कोई और भी कर रहा है।
अपनी स्वार्थ को हद से
ज्यादा सोपान न चढ़ा
जीतने के लिए आँख मूंदकर
झूठ का उफ़ान न बढ़ा
तू अपनी ताकत से किसी के
बढ़ते कदम को रोक सकता है
उसके राह में बाधा
उत्पन्न कर सकता है,
पर तू किसी के इरादे
को रोक नहीं सकता।
अंधेरे में दीप जलाकर कुछ
हिस्से को रोशन कर सकता है,
पर तू रात को दिन
नहीं बना सकता !
तू अपनी आँख मूंदकर
सूरज की रोशनी को
नकार नहीं सकता
तुम्हारे सिवा सत्ता किसी
और को भी मिल सकती है
इतना उतावलापन ठीक नहीं है,
सच को बर्दाश्त करना सीख !
हार को स्वीकार करके
एक नया अध्याय सीख।

परिचय :-  हितेश्वर बर्मन
निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ – बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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