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हे मम आत्म सखि

बृजेश आनन्द राय
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
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संसार के किसी अन्य व्यक्ति से नहीं
एक मात्र तुमसे आशा थी कि-हम-तुम…
‘साथ बिताए न बिताए हर इक समय’-
अन्तिम समय से पहले
एक दूसरे के समक्ष-
सत्य के साथ बिताएंगे!

बहुत लम्बी जिन्दगी
जी लिया हम दोनो ने
पर जाने क्यों लगता है कि-
‘मेरा सम्पूर्ण सत्य तुम्हारे
थोड़े से असत्य से भी बहुत छोटा है!’
जीवन के तमाम सम्मेलनों में
एक मात्र तुमसे ही सारे असत्य
कह लेने की छटपटाहट थी!

एक मात्र तुम्हारे ही समक्ष
अपने हर एक मौन पर
बयान करने..रो-लेने…
सान्त्वना पा-लेने…
और हर एक गॉठ खोलकर
शून्य के समान
हल्का हो लेने का मन था
बस थोड़ा सा ही
तुमसे जानना था कि-
‘क्या सोचती हो तुम फिर
कभी हमारे साथ के बारे में!’
यद्यपि हम दोनो के
कर्म अलग-अलग हैं
तो परिणाम भी अलग होंगे!

पर क्या अपने सम्पूर्ण
सत्य से मेरे सम्पूर्ण
असत्य को बदलना चाहोगी…?
हम पुनर्जन्म चाहते हैं
तुम्हारे साथ इसी लोक में…
इसी अनाम आत्म-प्रेम के साथ…
पर तुम क्या चाहती हो
पानी की तरह और सरल
होकर मेरे समक्ष बहना…!

मैं तो चाहता हूॅ अपने
असत्य के साथ तुम्हारे
सत्य में विलीन हो जाना!
अब नहीं चलना है…
विश्राम… और केवल विश्राम!
थका दिया है तन-मन की लिप्साओं ने
हे मम आत्म-सखि! आश्रय दोगी!!

परिचय :-  बृजेश आनन्द राय
निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र.द्वारा शिक्षा शिरोमणि सम्मान २०२३ से सम्मानित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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