प्रमेशदीप मानिकपुरी
भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़)
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मन के अंधियारे मे उम्मीदों के आश लगाये
संवर जाये जीवन ऐसा कुछ हम कर जाये
उम्मीदों के दीपक संग ही दीपावली मनाये
आओ किसी के जीवन में खुशहाली लाये
आपस के अब तो सारे राग द्वेष मिटा दें
जन-जन मे नवीन अब अनुराग जगा दें
दिल से दिल के अब तो सारे भेद मिटाये
आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये
अपनों को अपनेपन का अब अहसास दें
बदलती जीवन को अब नव-नव आश दें
चलो सब खुशियों की फुलझड़ीयाँ जलाये
आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये
समता, ममता व एकता के अब भाव जगे
मानव हित में मानवता के नव अंकुर जगे
मन से मानवता की ही अब ज्योति जलाये
आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये
मृगतृष्णा में भटक रहें सब मानव अब तो
रिश्तों का कंही कुछ लिहाज नहीं अब तो
चलो रिश्तों में फिर से नई मिठास जगाये
आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये
राग, द्वेष, मद, मोह सब कुछ भूल करके
मानवता के हित मानवीय काज करके
जन-जन में अब प्रेम की अलख जगाये
आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये
पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी
जन्म : २५/११/१९७८
निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़)
संप्रति : शिक्षक
शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा
रूचि : काव्य लेखन, आलेख लेखन, विभिन्न कार्यक्रम में मंच संचालन, अध्ययन अध्यापन
कार्य स्थल : शासकीय माध्यमिक शाला सांकरा
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