प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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मुस्कानों को जब बाँटोगे,
तब जीने का मान है।
मानवता जीवन की शोभा,
मिलता नित यशगान है।।
दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर,
जो देता है सम्बल
पेट है भूखा, तो दे रोटी,
दे सर्दी में कम्बल
अंतर्मन में है करुणा तो,
मानव गुण की खान है।
मानवता जीवन की शोभा,
मिलता नित यशगान है।।
धन-दौलत मत करो इकट्ठा,
कुछ नहिं पाओगे
जब आएगा तुम्हें बुलावा,
तुम पछताओगे
हमको निज कर्त्तव्य निभाकर,
पा लेनी पहचान है।
मानवता जीवन की शोभा,
मिलता नित यशगान है।।
शानोशौकत नहीं काम की,
चमक-दमक में क्या रक्खा
वहीं जानता सेवा का फल,
जिसने है इसको चक्खा
देव नहीं, मानव कहलाऊँ,
यही आज अरमान है।
मानवता जीवन की शोभा,
मिलता नित यशगान है।।
ख़ुद तक रहता है जो सीमित,
वह बिरथा इंसान है
अवसादों को अपनाता जो,
वह पाता अवसान है
अंतर्मन में नेह पालना,
करुणा-दया-विधान है।
मानवता जीवन की शोभा,
मिलता नित यशगान है।।
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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