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जादू नगरी

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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दीवाली के लिए मम्मा ने गुजिया-लड्डू बनाकर ऊँची रेक पर रख दिए। नीनू बेचारी… गुड़िया बहियन की छोटी गुजिया केही विधि पाए ?
उसके सारे प्रयास विफ़ल, रेक तक पहुँचने के।
नीनू ललचाते हुए माँगती है, “बस एक गुजिया दो न मम्मा, सच्ची बस एक ही।”
माँ ने फटकार लगाई, “बिल्कुल नहीं, भोग के बाद मिलेगा समझी।”
नन्ही नीनू मिठाई का सोचते-सोचते निंदिया रानी की दुलारी हो गई। और सपने में जादूनगरी पहुँच गई।
वहाँ का नज़ारा देखकर वह हैरान… एक अनूठे पार्क में नितांत अकेली चहलकदमी कर रही है। पेड़ो पर फलों के साथ मिठाइयाँ भी लटक रहीं हैं…रसगुल्ले, जलेबी, गुलाबजामुन वगैरह-वगैरह और… उसकी मनपसन्द रंगबिरंगी टॉफियाँ। नीनू की तो भई बल्ले-बल्ले हो गई।
वह समझ नहीं पा रही कि क्या करें, “चलो पहले सब देख लूँ, फिर खाने का इंतज़ाम करती हूँ।”
ज्यों ही उसने सामने देखा, “अहा ! शिकंजी के ताल में इमरती की नौका, मजा आ गया।”
नीनू झट से कुल्फियों की पतवारें थामकर सोचने लगी, “काश ! सहेलियाँ भी साथ होती।”
नीनू ने जैसे ही ऊपर देखा, वह चिल्लाने लगी, “अहा ! आसमान है कि रसीले दूध का बड़ा सा ताल। अरे ! ये सारे तारे रसगुल्ले कैसे बन गए?”
आगे देखा एक बड़ा सा चौक…उस पर टाइल्स की जगह उसकी पसंदीदा काजू कतलियाँ बिछी पड़ी थी। वह समझ नहीं पाती कि कहाँ से शुरु करें ?
अब नीनू आराम से एक-एक करके मिठाइयाँ खाने को तत्पर हुई, काश सब दोस्त साथ होते तो मस्ती में चार चाँद लग जाते। ऊपर चाँद भी उसे रसमलाई का कटोरा नज़र आ रहा था। अब वह क्या खाए और क्या छोड़े ?
तभी उसे लगा, कोई परी आकर उससे कह रही है, “चलो नीनू मैं तुम्हें खिलाती हूँ।” अरे यह तो …मम्मा की आवाज़ ! हाँ, ये तो मम्मा ही कह रही है उसे झंझोड़-झंझोड़ कर, “मेरी गुड़िया उठ ! पूजा करना है न। अरे गुजिया नहीं खाना क्या ?”
नीनू बेचारी आँखें मलती भागी बाथरूम की ओर।

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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