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इसके जद में सब आयेंगे

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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तूफ़ानों-सी बढ़ी रैलियाँ,
समरसता का वंश मिटाने।
इसके जद में सब आयेंगे।।

सघन तिमिर है आम्र वृक्ष भी,
लगे खड़ा हो प्रेत वहम का।
संस्कारित कुछ शृंग-श्रेणियाँ,
खोज रही अस्तित्व स्वयं का।
अनुबंधों की धुँधली शर्तें,
बनकर मौत खड़ी सिरहाने।।
इसके जद में सब आयेंगे।।

सावन के घन संभाषण से,
कर देते हैं जादू-टोना।
अलगावों के दावानल में,
सुलग उठा है कोना-कोना।।
विश्वासों की मीनारों में,
दिखते हैं अब रोग पुराने।।
इसके जद में सब आयेंगे।।

अट्टहास मौसम का सुनकर,
पंछी होने लगे प्रवासी।
धुआँ-धुआँ है सभी दिशाएँ,
आँखों में निस्सीम उदासी।।
जिह्वा पर ताले के भूषण,
आजादी पर मारे ताने।।
इसके जद में सब आयेंगे।।

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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