अमिता मराठे
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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धन त्रयोदशी से पांच दिन दीपावली महापर्व आरम्भ होता है। इस पर्व का साल भर बेसब्री से इंतजार होता है। ये सनातन धर्म का महा उत्सव है। रूप चौदस, महालक्ष्मी पूजन, गोवर्धन पूजा से होते हुए पांचवें दिन भाई दूज पर पूरा होता है। लेकिन उसका आनन्द मन में तुलसी विवाह तक बना रहता है। भारतीय संस्कृति में इस त्यौहार की महत्ता बहुत अधिक है। यही जीवन का सर्वोच्च आनन्द बिंदु है। खुशी, विजय, उल्लास, सामाजिक जुड़ाव और उजास के इस पर्व में प्रेम, स्नेह से मिलन समारोह मनाये जाते हैं। अनेक वर्षों के मन मुटाव भी मीट जाते हैं। भाई-बहन का अटूट प्रेम का प्रतीक भाई दूज पर्व पांच दिन की खुशियां बटोरकर झोली में डाल देता है।
बीते दो वर्षों में इस पर्व पर कोरोना रुपी दानव का साया छाया हुआ था। इस संक्रमण के रोग के कारण हम इस उजास के पर्व को उत्साह से नहीं मना पाये थे। चारों ओर सुना पन छाया हुआ था। दुनिया भर में अपनी पहचान रखने वाले इस पर्व पर महामारी की घोर विपदा थी। इस पर्व का संदेश भी हमें अपदा के अंधकार से बाहर निकल कर उजाले में आने का संदेश देता है। मुदित मन, स्वच्छ तनमन, तथा बाह्य स्वच्छता का भी आह्वान करता है। निर्मल मन का सुन्दर श्रृंगार करने हेतु हमें पुण्य अर्जित धन से इस दीप पर्व को मनाना चाहिए। झोपड़ी से लेकर बंगले तक लोग अपने अंदाज से पर्व को मनाते हैं।
बाजार विभिन्न आकर्षक वस्तुओं से सज जाते हैं। माटी के बिजली के दीपकों की रोशनाई मन को प्रफुल्लित कर देती है।लोग घरों की पुताई रंगाई में व्यस्त रहते हैं। विभिन्न व्यंजनों की महक हर घर से आने लगती है। पर्व मनाने का वास्तविक अर्थ है। हम अपने लिए सुख संसाधन एकत्रित करें साथ समाज के हर वर्ग को भी साथ में शामिल करें ता कि पर्व हमें सच्चे मानवीय मूल्यों को स्थापित करने में मदद कर सके।
माटी के दीपक की तरह निष्कलंक निर्वेर,निरापद होकर एक दूसरे को प्रकाश तथा उत्साह प्रदान करने का आह्वान करता है। कितना आश्चर्य हैं कि हमने ही पर्व से जुड़ी कथाओं से शिक्षा लेकर आनन्द से इस पर्व को विशेष बना दिया है। जिससे हमें ही समझना हैं कि जीवन में आये भय, बुराई, संघर्ष को कैसे मिटायें। सत्य, शुद्ध भावों से विजय की प्राप्ति चिरकाल होती है। यह ध्यान रखें कि किसी को दुःख न पहुंचे। क्यों कि ये पांचों दिन हमारी धार्मिक विचार धारा से जुड़े हैं। ऐश्वर्य वैभव की माता लक्ष्मी का अभूतपूर्व स्मरण साल भर ऊर्जा से भर देता है। अतः इसे प्राप्त करने के लिए असत्य का आश्रय नहीं लेना चाहिए। दीपोत्सव की रोशनी जगमगाएं जीवन में।
सत्य और पराक्रम की ज्योत जगे घर-घर में।
परिचय :- अमिता मराठे
निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश
शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुकेशन, अनेक प्रशिक्षण जो दिव्यांग क्षेत्र के लिए आवश्यक है।
वर्तमान में मूक बधिर संगठन द्वारा संचालित आई.डी. बी.ए. की मानद सचिव।
४५ वर्ष पहले मूक बधिर महिलाओं व अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आकांक्षा व्यवसाय केंद्र की स्थापना की। आपका एकमात्र यही ध्येय था कि महिलाओं को सशक्त बनाया जा सके। अब तक आपके इंस्टिट्यूट से हजारों महिलाएं सशक्त हो चुकी हैं और खुद का व्यवसाय कर रही हैं।
शपथ : मैं आगे भी आना महिला शक्ति के लिए कार्य करती रहूंगी।
प्रकाशन :
१ जीवन मूल्यों के प्रेरक प्रसंग
२ नई दिशा
३ मनोगत लघुकथा संग्रह अन्य पत्र पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में कहानी, लघुकथा, संस्मरण, निबंध, आलेख कविताएं प्रकाशित राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था जलधारा में सक्रिय।
सम्मान :
* मानव कल्याण सम्मान, नई दिल्ली
* मालव शिक्षा समिति की ओर से सम्मानित
* श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
* मध्यप्रदेश बधिर महिला संघ की ओर से सम्मानित
* लेखन के क्षेत्र में अनेक सम्मान पत्र
* साहित्यकारों की श्रेणी में सम्मानित आदि
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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