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बेगारी एक अभिशाप

सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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स्वाधीनता दिवस के बारे में सोचते सोचते अंग्रेजों द्वारा बरपाई क्रूरता याद आ गई। और वे यह सिखा गए हमारे उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों को। वर्षों पूर्व के वाकये हैं ये… सरकारी उच्च अधिकारियों के घर पर निम्न श्रेणी कर्मचारियों को घरेलू कार्य करने हेतु तैनात किया जाता था। उनसे अमूमन लोग झाड़ू-बर्तन-कपड़े, लीपना -पोतना, खाना बनाना, बच्चों को खिलाना, प्रेस-पालिश सब कुछ करवाते। मिर्ची-मसाले भी लगे हाथ कुटवा लेते।
यह तो एक तरह की प्रताड़ना ही हुई। ऐसा जब भी मैं देखती करुणा से भर जाती थी। मेरे घर भी आते थे। सबसे पहले मैं उन्हें चाय नाश्ता खाना वगैरह करवाती। फ़िर रोज़ का कार्य करवाती। उन्हें कोल्हू के बैल की तरह जोतना मुझे कभी नहीं गवारा। साथ वाली मेडम जी…सो काल्ड बाई साब लोग कहती, “आप भी न… ऐसी दया किस काम की। अरे! इन्हें सरकार पगार-भत्ते किसलिए देती है ?”
सद्भावपूर्ण व्यवहार करने वालों के यहॉं सभी अपनी ड्यूटी लगावाना चाहते हैं। ताकि वार-त्योहार पर भरपूर इनाम, कपड़े, ताज़ी मिठाई भी उन्हें मिल सके। मेरा अनुभव है कि अधीनस्थ कर्मियों के साथ अच्छा व्यवहार करने पर अन्य लोग बहिष्कार करते, “आप इन लोगों की आदत बिगाड़ रहे हो।”
हमारा स्थानांतर होने पर वे सब कर्मी रोते हुए विदा करते व बाद में मिलने भी आते थे। यह सब याद करके आज भी अफसोस होता है। हाँलाकि आज इतना शोषण नहीं होता इन कामगारों का। कानूनन भी यह अवैध है। फ़िर भी जो अंग्रेज छोड़ गए वह आज भी होता है।
सरकारी व निजी दोनों ही क्षेत्रों में अधीनस्थों का शोषण बदस्तूर जारी है। चाहे चोरी छुपे ही सही किन्तु होता है। आज भी घरेलू सेवक-सेविकाओं के प्रति कई मालिक-मालकिनों का रवैया बदला नहीं है। हाँ, फ़िर भी काम करवाने की गरज के ख़ातिर बदलाव आया है। डर यह भी रहता है कि कहीं ये कर्मी काम करना बंद ही न कर दें। अब ये भी सारे सरकारी नियम-कानून जानते हैं। मानवाधिकार एवं तमाम सामाजिक संस्थाओं की गतिविधियों से भी ये वाकिफ़ हैं।
फ़िर भी कहीं न कहीं, किसी भी रूप में ये पूर्णतः शोषण मुक्त नहीं हुए हैं, खास तौर से महिलाएँ। अतः यह हम सभी नागरिकों का सामाजिक दायित्व है कि इन्हें भी सम्मान दें। वही सम्मान जो हम कोरोनाकाल से सीख गए हैं…सुरक्षा, स्वास्थ्य व स्वच्छता कर्मियों के प्रति। हमारा व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण हो तो हमारे ये सेवक हर कार्य करने को तत्पर रहते हैं। जी हाँ, कहते हैं न …जैसा मेरा गाना वैसा तेरा बजाना।

परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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