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लहरों की आशाएं

हितेश्वर बर्मन
डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)
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बहती नदिया अपनी
रास्ता खुद से बना लेती है
राह के चट्टानों को
लहरों से बहा ले जाती है।
दृढ़ संकल्प लिये बढ़ती
सदा अपने लक्ष्य को
मुड़कर कभी देखती
नहीं है पीछे के दृश्य को।
जोश, जुनून के साथ
बहती लहरों में है उफान
मंजिल की ओर बढ़ती
है मन में लिए तूफान।
राह बनाती बह रही है,
पथरीली रास्ते को काटकर
अंजाम छोड़कर हर बाधाओं
से लड़ रही है डटकर।
थमती नहीं है कभी एकाग्र होकर
नित्य करती अपना काम
वो जानती है एक दिन सागर के
तट पर लिखा है अंजाम।
निडर होकर हरदम बहती है
चाहे मार्ग में आये कितनी बाधाएं
लहरों से शंखनाद करती
चल रही है मन में
लिये कितनी आशाएं।

परिचय :-  हितेश्वर बर्मन
निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ – बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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