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उठते ही रहना

शांता पारेख
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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ये एक सौ चालीस करोड़ लोगों का देश है। कुछ लोग चांदी का चम्मच लेकर जन्म लेते होंगे, पर कितने रोज जन्म ले रहे, कई घिसट रहे, कोई तड़प रहे, किसी ने कुछ पा लिया तो वह उसके स्वाद की चुस्कियां ले रहे, कोई पाने के लिए जद्दोजहद कर रहा, कुछ उसी में पिस रहे, कुछ गिर के खड़े हो रहे, तो कुछ बार बार गिर रहे, कुछ एक दम गायब हो रहे जिनका अतापता ही नही। दुनिया रेलम पैला है। स्टेशन जैसी हड़बड़ी में सब है। कोई चढ़ गया कोई उतर गया कोई लटक के लहलुहाँ हुआ। कितने नज़ारों से भरी दुनिया है, किसी की कहानी दूसरे की कहानी से मिलती ही नही। सबके किरदार सबके मंच व अदायगी है। पर एक चीज जो सबमे सामान्य है शाश्वत है, विश्वव्यापी है, वह है गिर गिर के उठना, हर उठने की प्रक्रिया में कुछ सीखना, सीखे हुए में कुछ दूसरा मिला कर पहले की गलती को न दोहराते हुए कुछ अच्छा बड़ा करने का हौसला बनाये रखना। रास्ते मे तोड़ने वाले तो मिलेंगे ही, तो आगे बढ़ने का हौंसला देने वाले भी बहुत मिलेंगे ही। साथी आड़े वक्त साथ दे देंगे, वह छुप के जेहन में सदा बैठे रहेंगे। कोई उनको निकाल नही सकता। तोड़ने वाले फिर फिर सामने आएंगे उनकों भूल कर, माफ कर आगे बढ़ जाना। सबसे अंत मे मनचाहा मिल जाने पर दोनो के प्रति शुक्रिया का भाव रख कर फकीरी को अपनाना। उठना गिरना में जरूरी बात है पुनः पूरे मन से आरंभ करना। जिसने यह जान लिया सीख लिया सफलता यश प्यार उसके द्वार पे खड़े रहते है। ऐसे में भी जो अहंकार को छूने न दे, वह होता है विजेता। चाहे सम्मान पुरस्कार मिले न मिले, अखबार में फोटो न भी छपे, तो भी वह कई लोगो का प्रेरणा पुंज होता है उसकी जिंदगी ही बहुतों के लिए प्रेरणादायी होती है। वह इंसान चले जाता है, हो सकता है उसकी अन्तिमयात्रा में कुछ गिने चुने ही लोग हो, तो भी वह सदाकाल जी सकता है उनलोगों के दिल मे जिन्होने प्रेरणा ली है, फिर वह उसके परिवार व फिर उसके बच्चों में भी जियेगा। इसलिए उन बेमानी चीजों की तरफ भागना मूर्खता है। बस जियो तो ऐसे कि खुद खुद की मिसाल बन जाओ। ये बाते यूटोपियाई लग रही होगी, सच दिखावे की दुनिया मे ऐसा लगता ही है। पर इतिहास उठा कर देखो, महान वे ही बने या माने गए जिन्होंने अपने लक्ष्य के सिवा कुछ देखा ही नही, बस अपना काम करते रहे, गुमनामी में भी बहुत बाद में उनके काम को परखा तब वे धरोहर बने।बात चलने गिरने व फिर खड़े होने वालों की ही है। आज भी शीर्ष पर तो मुट्ठीभर ही है। बाकी सब संघर्षरत है, यही जीवन है संघर्ष व समायोजन।

परिचय : शांता पारेख
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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