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भोर का फैले उजाला

मीना भट्ट “सिद्धार्थ”
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
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भोर का फैले उजाला हर तरफ,
दृष्टि-पथ आबाद होना चाहिए।
मौन क्यों बैठे हुए हो मीत तुम,
अब मुखर संवाद होना चाहिए।।

साजिशें हैं हर कदम जंजीर सी,
है विसंगति का यहाँ अब तो कहर।
आँसुओं की गंग मे डूबे सभी,
गाँव क्या हैं रो रहे व्याकुल शहर।।
छल रहे विश्वासघाती से मधुर,
आज परिसंवाद होना चाहिए।

भोर का फैले उजाला हर तरफ,
दृष्टि-पथआबाद होना चाहिए।।

फूल बगिया के सभी मुरझा गये,
है दुखी मधुमास, मन मधुकर विकल।
वंचनाओं से करो अब मुक्त मन,
और जीवन-लक्ष्य हो मंगल सफल।।
कंटकों को भूल ‘मीना’ जय वरो,
जीत का अनुनाद होना चाहिए।

भोर का फैले उजाला हर तरफ,
दृष्टि-पथ आबाद होना चाहिए।।

ले अपाहिज जिन्दगी मजबूर सब,
हर तरफ से मिल रहा उपहास है।
जल गयी बस्ती लुटी है झोपड़ी,
अब सुदर्शन चक्र से ही आस है।।
द्रोपदी की लाज संकट में पड़ी,
जुल्म का प्रतिवाद होना चाहिए।

भोर का फैले उजाला हर तरफ,
दृष्टि-पथ आबाद होना चाहिए।।

परिचय :- मीना भट्ट “सिद्धार्थ”
निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश)
पति : पुरुषोत्तम भट्ट
माता : स्व. सुमित्रा पाठक
पिता : स्व. हरि मोहन पाठक
पुत्र : सौरभ भट्ट
पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट
पौत्री : निहिरा, नैनिका
सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्कता समिति जबलपुर की भूतपूर्व चेयरपर्सन।
प्रकाशित पुस्तक : पंचतंत्र में नारी, काव्यमेध, आहुति, सवैया संग्रह, पंख पसारे पंछी
सम्मान : विक्रमशिला हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा, विद्या सागर और साहित्य संगम संस्थान दिल्ली द्वारा, विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि, गुंजन कला सदन द्वारा, महिला रत्न अलंकरण तथा कई अन्य साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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