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अंधे की प्रजाति

हितेश्वर बर्मन
डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)
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आँख से अंधा जीवन भर हाथ में
लाठी पकड़ कर चलता है
जब भी आँख दिखता है उसी वक्त
लाठी को पहले फेंकता है।
स्वार्थी मनुष्य भी आँख रहते हुए
अंधे की तरह काम करता है
मतलब निकलने के बाद पथ
प्रदर्शक को ही बदनाम करता है।
इस दुनिया में दुष्ट, स्वार्थी व
अहसान फरामोश भरे पड़े हैं
पनाह देने वाले के ही रास्ते
रोककर चट्टान की तरह खड़े हैं।
आजकल लूटेरे लोग दूसरों के हक
को छीनकर हरदम जोश में रहते हैं
कौन कैसा है पता ही नहीं चलता यहाँ
बेईमान भी सफ़ेदपोश में घूमते है।
सूरज की रोशनी भी कम पड़ जाती है
यदि हृदय के भीतर ही अंधेरा हो
सज्जन व्यक्ति भी नजर नहीं आता
यदि चारों तरफ़ बेईमानों का ही बसेरा हो।
अंधे दो तरह के होते हैं, एक जो
अपनी आँखों से कुछ देख नहीं सकता
दूसरा वो जो आँख रहते हुए भी सच
और झूठ में भेद नहीं कर सकता।

परिचय :-  हितेश्वर बर्मन
निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ – बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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