विजय गुप्ता “मुन्ना”
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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राजनीति प्रवक्ता के बोल, रटे रटाए दिखते हैं।
आड़ा तिरछा पूछ लिया तो, प्रति प्रश्न ही करते हैं।
बोलने से कमाई होती, पर दिशाहीन चलते हैं।
संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते हैं।
अच्छा बोलने वाले का तो, हुनर दिलाता है मौका।
गलत बात टकरा जाए, वक्ता जड़ते छक्का चौका।
बस तारीफों के पुल बांधों, भले नहीं सोना चोखा।
गुजरे समय में खूब जिनसे, पार्टी ने खाया धोखा।
उन चतुरों की खातिर देखो, बस अंगार चमकते हैं।
संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते हैं।
वकील कानूनी भाषा से, रखें तर्क वितर्क कुतर्क।
अदालत फैसला रहे एक, पर वक्ता दलील में फर्क।
अपने मतलब का जोड़-तोड़, दिखाकर ही पाते हर्ष।
आरोप अपराध अंतर में, करते कई बार विमर्श।
कागज सबूत फोटो अनेक , पैरवी में दमकते हैं।
संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते हैं।
कहो विरोधी को मनमाना, लेश मात्र नहीं संकोच।
क्या जरूरी प्रमाण आपका, सुनते आए यही सोच।
कथनी करनी अंतर बयान, उदघोष में रखते जोश।
पेट आपके क्यों दर्द हुआ, खोया रहे खुद का होश।
वाशिंग मशीन धुलाई का, विकल्प सदैव रखते हैं।
संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते हैं।
उमर हो गई राजनीति की, घर जाकर आराम करो।
सत्ता लोभी है सारा विपक्ष, चैनल पे ये बात धरो।
विपक्षी विरोध दुर्योग है पर, गाली देने नहीं डरो।
हवाइयां उड़ती हवा महल, पाप जहां के वहीं भरो।
तुष्टिकरण जाति धर्म अलाप, घमंड विद्रोह घिरते हैं।
संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते हैं।
राजनीति प्रवक्ता के बोल, रटे रटाए दिखते हैं।
आड़ा तिरछा पूछ लिया तो, प्रति प्रश्न ही करते हैं।
बोलने से कमाई होती, पर दिशाहीन चलते हैं।
संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते हैं।
परिचय :- विजय कुमार गुप्ता “मुन्ना”
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़
उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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