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पावन विजय-दशहरा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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है असत्य पर सत्य की, विजय दशहरा पर्व।
पराभूत दुर्गुण हुआ, धर्म कर रहा गर्व।।

है असत्य पर सत्य की,विजय और जयगान।
विजयादशमी पर्व का,होता नित सम्मान।।

जीवन मुस्काने लगा, मिटा सकल अभिशाप।
है असत्य पर सत्य की, विजय दशहरा ताप।।

है असत्य पर सत्य की, विजय लिए संदेश।
सदा दशहरा नम्रता, का रखता आवेश।।

है असत्य पर सत्य की, विजय लिए है वेग।
विजयादशमी पर्व है, अहंकार पर तेग।।

नित असत्य पर सत्य की, विजय खिलाती हर्ष।
सदा दशहरा चेतना, लाता है हर वर्ष।।

तय असत्य पर सत्य की, विजय बनी मनमीत।
इसीलिए तो राम जी, लगते पावन गीत।।

नारी का सम्मान हो, मिलता हमको ज्ञान।
है असत्य पर सत्य की, विजय दशहरा आन।।

है असत्य पर सत्य की, विजय सुहावन ख़ूब।
राम-विजय से उग रही, धर्म-कर्म की दूब।।

यही सार-संदेश है, यही मान्यता नित्य।
है असत्य पर सत्य की, विजय‌ बनीआदित्य।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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