सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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भारत त्योहारों का देश है। इनकी महत्ता हर क्षेत्र को प्रभावित करती है। किंतु समाज, जो जनसमूह से बनता है, के हितार्थ ही मानो त्योहारों की संरचना हुई है।
समाज को चलाने में नैतिक मूल्यों को भुलाया नहीं जा सकता है। दशहरा उत्सव की जड़ में है रावण जिसने सीता को हरा था। इसके पीछे रावण का अहंकार व विजेता बनने की लालसा थी। मर्यादा के प्रतीक राम ने रावण को हराया अर्थात बुराई पर अच्छाई की जीत।
समाज के भी नियम होते हैं…सदाचरण यानी नारी मात्र का आदर करना। जो यह नहीं पालन करता, उसे सजा मिलनी ही चाहिए।
रावण के दस सिर दिखाए गए हैं व आज भी बनाए जाते हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह, वासना ये पाँच विकार हैं। रावण के दस सिर यानी पाँच स्त्री के विकार व पांच पुरुष के। समाज में ये विकार नहीं होने चाहिए। प्रेम सुख शान्ति चरित्र की पवित्रता व दुर्गुणों से लड़ने की अष्ट शक्तियां चाहिए। अतः प्रति वर्ष दस सिर वाले रावण को जलाकर लोगो को यही बात याद दिलाते हैं। सुनियोजित सुखी समाज तभी होगा। अन्यायी कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, उसका विनाश होता ही है। और सत्य कभी पराजित नहीं होता। हाँ, परेशान हो सकता है।
कोई व्यक्ति कितना भी गुणी बुद्धिमान क्यों न हों, उसको अपनी बुराई का भी फल मिलता है। जब कोई व्यक्ति बुराई मिटाने की मशाल उठाता है तो कारवाँ बढ़ता जाता है। और अच्छाई का दायरा भी बढ़ता जाता है।
समाज का कोई व्यक्ति यदि किसी अच्छे काम के लिए लड़ता है तो पूरी कायनात साथ देती है। केवट, ऋषि-मुनि, वानर आदि भी।किन्तु बुरे काम में विभीषण से भाई भी पल्ला झाड़ लेते हैं। छोटे बच्चों को मूल्यों की शिक्षा राम व रावण जैसे उदाहरणों से दी जा सकती है। बच्चे ही तो भावी समाज के कर्णधार हैं।
गाँवों में आज भी दशहरे के अगले दिन छोटे-बड़े, सेवक-मालिक सभी का मिलन समारोह होता है। एक आदर्श समाज में ऊँच-नीच का भेद-भाव नहीं होता है।
देश की प्रथम इकाई है समाज। समाज में आदर्श नागरिक होंगे तो राजनीति में निष्पक्षता व न्याय होगा, अर्थ-प्रणाली सुनियोजित होगी। अर्थात एक आदर्श समाज ही रामराज्य ला सकता है। साथ ही शस्त्र-पूजा द्वारा बुराई पर विजय पाने के लिए शक्ति का आव्हान किया जाता है। समय की माँग के अनुसार शक्ति का उपयोग भी आवश्यक है।
इस दिन भजिए व पान खिलाने का रिवाज है। पकोड़ों में कई तरह के मसाले, हरा धनिया, मिर्ची, प्याज़ तथा ख़ास तौर पर गिलकी, पालक, अजवाइन के व पोदीना के पत्ते डाले जाते हैं। इस सम्मिश्रण में देश की एकता, कई अनेकताओं में भी परिलक्षित होती है। और पान का बीड़ा मीठी वाणी का प्रतीक है जो समाज में ज़रूरी है।
समाज यानी सब का साथ, एक सबके लिए व सब एक के लिए। इस दिन परिवार के सभी छोटे अपने बड़ों का आशीर्वाद पाते हैं। साथ ही बासी दशहरे के दिन मिलन समारोह की परंपरा सहकार व सरोकार की प्रेरणा देता है।
परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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