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छीन लो अपना हिस्सा

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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जगह जगह रख छोड़े हैं
इंसानों ने गुलाम,
जिसके अंग-अंग पर
नजर आ जाती है
प्रतीक गुलामी के,
मस्तिष्क में सजा हुआ है
आस्था के ताज,
जिसे वे मान रहे रिवाज,
माथे पर सुहाग की निशानी,
नाक में नकेल,
गले में सुहाग सूत्र,
बांह में बहुटा,
कमर में करधन,
पैरों में बेड़ियां,
क्षमा कीजिये
प्यारा नाम पायल,
तन को पूरी तरह
लपेटते, ढंकते
साड़ी, घूंघट, बुरखे,
किसी से सीधे
नजर न मिलाने
की ताकीद,
और भी बहुत
सारी बंदिशें,
जिन्हें जरूरी
और कीमती बता
धकेला गया
कई बरस पीछे,
ताकि न मिला सके
वो कदम से कदम,
की गई है बराबरी
न कर पाने की
अनेक कुत्सित साजिशें,
हतप्रभ हूं उधर से
क्यों नहीं की जा रही है
विद्रोह की रणभेरी
का आगाज,
जबकि उनके
साथ खड़ा है
अशोक स्तंभ
की तरह संविधान,
पढ़ो, जानो और
वैधानिक तरीकों से
छीन लो अपना हिस्सा,
और बता दो समान हो
गुलाम नहीं।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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