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गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या

भीष्म कुकरेती
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या
(गढ़वाली व राजस्थानी लोक गीत तुलना श्रृंखला)

जल जीवन है। सभी क्षेत्रों में सोत्र से पानी भरने परम्परा होती थी। राजस्थान हो या गढ़वाल-कुमाऊं का भूभाग सभी जगह सोत्रों से पानी भर कर लाना जीवन का एक मुख्य भौतिक कार्य या परम्परा थी। भौगोलिक विशेषताओं के कारण दोनों क्षेत्रों में, जल सोत्र, पानी भरने की व पानी लाने की शैली अलग-अलग हैं और उसी कारण पानी लाते वक्त समस्याएं अलग-अलग हैं। दोनों क्षेत्रों में जल भांड भी भिन्न होते हैं। देखें लोक गीतों में उत्तराखंड व राजनस्थान क्षेत्र की क्या क्या विशेषताएं होती हैं।

राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या

राजस्थान में पानी की कमी है, पानी भरने दूर कुँएँ तक जाना होता है और पानी लेन की क्या क्या समस्याएं हैं वह इस गीत में दर्शाया गया है।

सागर पानी लेने जाऊं।
सागर पानी लेने जाऊं।।

म्हारो इंगरू लो टीको,
रंग उड़ उड़ जाए।
सागर पानी लेने जाऊं।।

म्हारो बाजू बंद डोरा,
लूमा खुल खुल जाए।
सागर पानी लेने जाऊं।।

रतन जड़त म्हारो लूगड़ी
मोती झर झर जाए।
सागर पानी लेने जाऊं।।

हरी छींट को घाघरो
मैलो होय होय जाए।
सागर पानी लेने जाऊं।।

म्हारो कासनी सा डोला
फीको पड़-पड़ जाए।
सागर पानी लेने जाऊं।।

गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या

गढ़वाल की पहाड़ियों में पानी सोत्र की समस्या नही है, किन्तु दूरी एक समस्या तो थी। इसके अतिरिक्त पानी सोत्र के पास पानी अधिक होने से फिसलन भरा रास्ता एक विकट समस्या तो थी ही। गढ़वाल-कुमाऊं में पानी भरने के कई गीत प्रसिद्ध हैं। एक प्रचलित लोक गीत को देखिये

द्वी बालों को मै छै,
पानी नै जाए।
बुवारी गमस्वाली,
पानी नै जाए।
जल चिफालो,
तू रड़ी मरललै।
भट भूटी खौंल,
पानी नै जाए।
चौमास को दिन,
पानी नै जाए।
छेपड़ा छ्ल्याल,
तू छली मरलै।
भूख रै जौंल,
पानी नै जाए।
द्वी बालों को मै छै,
पानी नै जाए।
बुवारी गमस्वाली,
पानी नै जाए।

अनुवाद

दो बच्चों की मां है,
पानी भरने न जा।
बहु गमस्वाली,
पानी भरने न जा।
रास्ता फिसलन भरा है
तू फिसल कर मर जायेगी।
भट भूजकर खायेंगे,
पानी भरने न जा।
मेंढक छल्याएंगे तू
डूबकर मर जायेगी।
चौमास का समय है,
पानी भरने न जा।
भूखे रह जायेंगे,
पानी भरने न जा।
दो बच्चों की मां है,
पानी भरने न जा।
बहु गमस्वाली,
पानी भरने न जा।

सन्दर्भ –
लीलावती बंसल, २००७, लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
डा नन्द किशोर हटवाल, २००९ उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी गीत एवं नृत्य, विनसर पब क. देहरादून (अनुवाद सहित )
K.S Pangti , Lonely Furrows of Borderland -गीत संकलन

Copyright @Bhishma Kukreti
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परिचय :-  भीष्म कुकरेती
जन्म : उत्तराखंड के एक गाँव में १९५२
शिक्षा : एम्एससी (महाराष्ट्र)
निवासी : मुम्बई
व्यवसायिक वृति : कई ड्यूरेबल संस्थाओं में विपणन विभाग
सम्प्रति : गढ़वाली में सर्वाधिक व्यंग्य रचयिता व व्यंग्य चित्र रचयिता, हिंदी में कई लेख व एक पुस्तक प्रकाशित, अंग्रेजी में कई लेख व चार पुस्तकें प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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