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सपने सजाये बैठा हूँ

प्रमेशदीप मानिकपुरी
भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़)
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दिल मे कितना बोझ लिये बैठा हूँ
दिल मे दर्द के सैलाब लिए बैठा हूँ
बहुत दूर तलक है अंधेरा ही मगर
पर उम्मीदों की दिये जलाये बैठा हूँ

अंधेरा भी मिट जायेगा एक दिन
बाहरें फिर लौट आयेगी एक दिन
एक दिन आयेगी रौशनी कंही से
मन को अब ये समझाये बैठा हूँ

रात के बाद दिन का आना तय है
दुख के बाद सुख का आना तय है
आयेगी नूतन किरण अब नभ से
अब सूरज से नजर मिलाये बैठा हूँ

अरमानो से सजी सब रातें होंगी
खुशियों की नित अब बातें होंगी
हर दिन होगी खुशियों का मेला
मन मे यह विश्वास जगाये बैठा है

कितने सपने भी अब टूट रहें है
कितने अपने भी अब छुट रहें है
टूटती तारों संग जाने क्यों कर
नवीनतम सपने सजाये बैठा हूँ

परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी
पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी
जन्म : २५/११/१९७८
निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़)
संप्रति : शिक्षक
शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा
रूचि : काव्य लेखन, आलेख लेखन, विभिन्न कार्यक्रम में मंच संचालन, अध्ययन अध्यापन
कार्य स्थल : शासकीय माध्यमिक शाला सांकरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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