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पापा

निरुपमा मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
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लड़खड़ा कर गिरा पहली बार जब मैं,
तुमने बाहें बढ़ाकर संभाला मुझे;
उंगली थामी थी तुमने मेरी ज़ोर से,
फिर गिरने से पहले उठाया मुझे।
लड़खड़ा ……

घोड़ा बनने को जब मैंने तुमसे कहा,
तुमने पीठ पर अपनी मुझको चढ़ाया;
हराया था मैंने दोस्त को दौड़ में,
मेरे बस्ते को तब तुमने उठाया।
लड़खड़ा ……

कंटक भरी राह पर चलना सिखाया,
तुमने उड़ना सिखाया सपनों को मेरे;
पहचान कराया स्वाभिमान से मेरा,
मेरा अभिमान हो पापा तुम मेरे।
लड़खड़ा …..

मैं खड़ा जब हुआ अपने पैर पर,
सोचा बोझ तुम्हारा कुछ कम करूं;
तुम बोले कि मैं हूं पापा तेरा,
अब मित्र बनकर सदा हम रहें।
लड़खड़ा ……

आयु ने पापा को कभी छेड़ा नहीं,
कंधे उनके अभी भी झुके ही नहीं;
मेरे बेटे के साथ लगाते ठहाका,
मैं किनारे खड़ा मुस्कुराता रहा।
लड़खड़ा ….

परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा
जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर)
निवासी : जानकीपुरम लखनऊ
शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)
साहित्यिक यात्रा : दो कहानी संग्रह प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प्रकाशित कहानी संकलनों में कहानियां प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, यात्रा वृत्तांत तथा लेख प्रकाशित। श्री ईशोपनिषद तथा श्री केनोपनिषद की सरल काव्य प्रस्तुति।
सम्प्रति : भारतीय स्टेट बैंक से सन् २०१३ में सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन एवं सामाजिक संस्था ‘श्री महिला शक्ति मंडल फाउंडेशन लखनऊ’ के माध्यम से सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव।
सम्मान : लोपामुद्रा सम्मान- २०१८
घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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