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बुढ़ापा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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गुज़रा ज़माना नहीं,
वर्तमान भी होता है बुढ़ापा,
सचमुच में चाहतें,
अरमान भी होता है बुढ़ापा।

केवल पीड़ा, उपेक्षा,
दर्द, ग़म ही नहीं,
असीमित, अथाह सम्मान
भी होता है बुढ़ापा।

ज़िन्दगी भर के समेटे
हुए क़ीमती अनुभव,
गौरव से तना हुआ
आसमान भी होता है बुढ़ापा।

पद, हैसियत, दौलत,
रुतबा नहीं अब भले ही,
पर सरल, मधुर, आसान
भी होता है बुढ़ापा।

बेटा-बहू, बेटी-दामाद,
नाती-पोतों के संग,
समृध्द, उन्नत ख़ानदान
भी होता है बुढ़ापा ।

मंगलभाव, शुभकामनाएं,
आशीष, और दुआएं,
सच में इक पूरा समुन्नत
शुभगान भी होता है बुढ़ापा।

घुटन, हताशा, एकाकीपन,
अवसाद और मायूसी,
गीली आँखें पतन,
अवसान भी होता है बुढ़ापा ।

संगी-साथी, रिश्ते-नाते,
अपने-पराये मिल जायें यदि,
तो खुशियों से सराबोर
महकता सहगान भी होता है बुढ़ापा।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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