विजय गुप्ता “मुन्ना”
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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मानो कहकर सोचना, दे जाता अवसाद।
जो सोचकर कहे सदा, मनमोहक हो नाद।।
चेहरा भाव जानिए, अंतर्मन की चाल।
कलम समझ तो अनवरत, भाषा मालामाल।।
हाव_भाव गुण देन से, जीवन कुछ आसान।
दोहरापन छिपा कहीं, कर लेते पहचान।।
मुख से प्रकट कुछ करे, मन में रखे दुराव।
भिन्न रूप अति सहजता, दिखता है स्वभाव।।
पढ़कर भाषा अंग की, माना होती जीत।
बचना हो जब गैर से, उसकी है ये रीत।।
रिश्तों संग कटुता कभी, देती जब आभास।
सहज ढंग परखो इन्हें, सुखद रहे आवास।।
विभिन्न अर्थ नकारते, अपनी जिद की टेक।
सदाचार ही खो गया, जो बन सकता नेक।।
साफ झलकते भाव की, परख शक्ति ही शान।
शब्द चयन आधार से, मृदु कुटिल पहचान।।
गुण अवगुण दोनों रहें, जग मानव का सार।
सहनशील हरदम नहीं, अवश्य करो विचार।।
परख अनोखी चाहतें, संभव रहे बचाव।
हर पहलू के रूप दो, गलत सही प्रभाव।।
सरल सहज प्रभाव से, बन सकते मजबूत।
निर्मित भाव विशेष का, खुद ही प्रभु सबूत।।
कुशल परख की राह से, बन जाते बलवान।
’मुन्ना’ कद्र की बात है, कुछ होते अनजान।।
परिचय :- विजय कुमार गुप्ता “मुन्ना”
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़
उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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