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आदमी और कुत्ता

अरुण कुमार जैन
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 

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 मेरे एक मित्र ने नया मकान बनवाया, अक्सर वे मुझसे बड़े भाई की हैसियत से सलाह ले लिया करते हैं। बड़े भाई लोग दो तरह के होते हैं, एक वह जो शहर को सम्हाले रखते हैं और उनकी भाईगिरी के चर्चे थानों से लेकर बाजारों तक और बड़े क्लब, मॉल, थिएटर, होटलों से लेकर, बाजारों के। व्यापारिक संगठनों, रेहड़ी संगठन, ऑटो रिक्शा संघ, ट्रक ऑनर एसोसिएशन, भू माफियाओं, कैसिनो, और तमाम तरह के जरायम पेशा धंधों चोर, गिरहकटियों, उठाईगिरों आदि जिन्हें की सभी को अब संगठित शक्ल दे दी गई है, इन सभी जगह के छोटे-छोटे भाईयों के ऊपर बड़े भाई के कंधे हैं उसी पर रखकर ये छुटभैय्ये अपने निशाने साधते रहते हैं, ये बड़े मजबूत कंधे सबका बोझ सम्हाले हुए रहते हैं और ये सभी उन्हें कभी दशहरा की पांवधोक के बहाने, तो कभी ईद की ईदी के नाम, कभी दीपावली की मिठाई के नाते, तो कभी बड़े दिन के नाम पर होली क्रिसमस मना लेते हैं, छोटे-छोटे भोग लगा आते हैं। ये बड़े भाई भी सर्व धर्म समभाव से, सबसे मिलते हैं, कोई भेदभाव नहीं, कोई जातिवाद नहीं, एकमात्र वास्ता भाईयों के बड़े भाई। दरबार लगता है, कभी किसी को टोक देते हैं, तो कभी किसी को ठोक देते हैं। थाने वाले हों या बड़े साहब के दरबार से उनके यहां बाकायदा हाजरी लगा कुशल क्षेम पूछ लेते हैं, जब भाई पूछते हैं कैसे आना हुआ, बस शर्मिंदगी से बोल देते हैं, बस भाई जी इधर से गुजर रहे थे सोचा आपके दर्शन करते चलें। चाय आते आते वे अपने असली मकसद पर आ जाते हैं भाई वो पिछले दिनों ऋतु नगर में एक डकैती हुई थी , मुजरिम पता नहीं लग रहे हैं थोड़ा देखिएगा भाई जी। भाई जी मुस्कुराते हैं कल तक आपके यहां हाजिर हो जाएंगे। इधर साहब लोग गए और उधर बड़े भाई के गुर्गों ने जन्मपत्री खोल दी भाईजी डेढ़ करोड़ का माल था, रिपोर्ट सत्तर लाख की लिखाई है,माल किस ज्वेलर ने खरीदा और किस छुटभैय्ये का काम है, सब तैयार है। अब छुटभैय्ये को तलब होगा, पचास उससे लिए जाएंगे, एक आदमी वह सरेंडर करेगा और पचास लाख बड़े साहब के पास रिकवरी दिखाई जाएगी। ज्वेलर तलब होगा उसका नाम पुलिस तक न देने के दस पंद्रह रखवाए जाएंगे। थानेदार को तलब कर माल और आरोपी सुपुर्द किए जाएंगे, बदले में आरोपी से कोई मार ठोक नहीं, जेल में खाने का इंतजाम सब चकाचक। थानेदार को बड़े साहब से पुरस्कार और प्रमोशन की सिफारिश। जिसका माल चोरी हुआ उसे बुलाकर समझा दिया जाएगा की वह पचास का माल चुपचाप रख ले, कोर्ट से सुपुर्दगी मिलेगी तो दो चार साल लग जाएंगे और जमाने के चोर उचक्कों की निगाह तेरी तरफ रहेगी, आयकर वाले और सरकारी एजेंसियों को पीछे मत लगवाओ धंधा करो खुलकर और आगे बैखौफ कमाओ, व्यापारी आदमी हो थोड़ा बहुत नफा नुकसान मत देखो, अगली बार इन आरोपियों से ही कुछ और दिलवा देंगे। इस तरह इन बड़े भैया के कंधे मजबूत होते रहते हैं, कईयों के पेट पलते रहते हैं। इनकी अदालत के फैसले कभी किसी को नाराज नहीं करते, दिल जीत लेते हैं सबके। कोई रोए तो रो नहीं सकता और हंसे तो हंस नहीं सकता, हर कोई आता है और मुस्कुरा कर निकल जाता है।
इनके अपने कई धंधे चलते हैं और दूसरे चलाते रहते हैं, इनका अपना तगड़ा नेटवर्क है, किसी की बेटी की लुटती इज्जत को इन्होने सरे बाजार होने से बचाया तो किसी के लड़के को रेप करते पकड़े जाने पर मामला रफा-दफा करवा कर गरीब की लड़की की शादी का धन जुटवा दिया। किसी को जमानत दिलवा दी, किसी को नौकरी।सारा शहर इनके एहसानों में दबा पड़ा है। यह दयालु किस्म के जल्लाद इंसान हैं, जब जैसी जरुरत हो वैसे पेश आना पड़ता है।
दूसरी श्रेणी के वे भाई लोग हैं जिन्हें छुट भैय्ये राय मशविरा के लिए कायम रखते हैं या सलाहकार मुफ्तिया बतौर उनकी इज्ज़त बढ़ाते रहते हैं और जब जरुरत हो तब उन्हीं के घर का चाय नाश्ता सुडककर मुफ्त राय लिए चले आते हैं। मेरे मित्र भी मुझसे दूसरे बड़े भाई की तरह संबंध बनाए रखते हैं। आज सुबह वे ऐसे ही आए थे, सलाहकारी विजिट पर, भाईजी नया मकान तो बनवा लिया है, आप तो जानते हैं ,एक तरफ है थोड़ा चोरी चकारी का डर भी है तो नाम पट्टिका लगाई जाए या नहीं। मैंने अनुभवी की तरह समझाया नाम पट्टिका जरुर बनवाओ, मुहल्ला कॉलोनी पहचानने लगेगी, हर कोई पोस्टमैन थोड़े होता है की आपका पता ठिकाना पहचाने। फिर आने जाने वाले दसियों आमदरफ्त देखेंगे की अच्छा तो यह सुनील कुमार का घर है। जब कोई पता पूछेगा तो आसानी से बता देंगे, इससे तुम्हारे यहां आने वाले को भी लगेगा की तुमको इतनी जल्दी आस पास सब पहचानते हैं, तुम्हारी हैसियत बढ़ जाएगी। साथ में तुम कुत्ते से सावधान की एक पट्टिका और बनवा कर लगवा लो ताकि ऐरा गैरा सेल्स मैन टाइप आदमी बाहर से ही आवाज लगा ले, अंदर न घुसे। डोर बेल भी कुत्ते भौंकने की आवाज वाली लगा लेना ताकि कोई घंटी भी बजाए तो उसे एहसास होता रहे की तुम्हारा कुत्ता है।
इधर जब हम उसके घर गृह प्रवेश के कार्यक्रम में गए तो देखा पेंटर ने कमाल की नाम पट्टिका बना दी जिस पर सुंदर अक्षरों से लिखा था… कुत्तों से सावधान और ठीक नीचे दूसरी नाम पट्टिका सजी थी… सुनील कुमार। ऐसा अक्सर हमारे देश में होता है। कुत्ते पालने वाला अपना स्टेटस दिखाता है, सुबह सबेरे कुत्ते को पट्टा बांध घुमाने ले जाता है, सर्दी, गर्मी, बरसात अहरनिश कुत्ता सेवा करता है। कभी-कभी लगता है आदमी ने नहीं कुत्ते ने आदमी को पाला है। कुत्ता मालिक की मर्जी से नहीं चलता वह अपनी मर्जी से जिधर जाता है मालिक उसी ओर जाता है।
अभी खबर आई थी की दुनिया की बड़ी फिल्म कंपनी पैरामाउंट पिक्चर्स ने वहां के पालतू कुत्ता संघ के सहयोग से अपनी नई फिल्म का प्रीमियर शो दो घंटे का रखा जिसमें करीब ढाई सौ से ज्यादा कुत्तों ने शिरकत की और पूरी फिल्म देखी, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में यह दर्ज हो गया, कुत्तों के साथ उनके मालिकों ने भी फिल्म देखी। सभी कुत्ते बेल्ट से बंधे रहे और उनके मालिक कुत्तों से। कुत्तों के लिए हड्डियां भी रखी गई होगी ताकि वे चुपचाप बैठी रह हड्डियों का रस लेती रहे और मालिक फिल्म का रस लेते रह, कुत्तों को सहलाते रहें। कई लोग हैं जिन्हें अपने बच्चों को सहलाने की फुरसत नहीं है मगर ये पेट लवर्स कुत्तों को सहलाते मिलेंगे। कुत्तों को कोई ड्रेस पहनाएगा, कोई पोनीटेल बांधेगा, हैट लगाएगा। कुत्तों का मानवीकरण हो गया है।
इधर मानवों का भी कुत्ता करण कम नहीं हुआ है। सभ्यता के विकास के साथ यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। वैसे भी मनोविज्ञानी कहते हैं की हर आदमी में पशुता होती है और वैसे ही पशुओं में थोड़ी मानवीयता। जैसे हर पुरुष में थोड़ी स्त्री और हर स्त्री में थोड़ा पुरुष विद्यमान होता है।इसके प्रचलित उदाहरण हमारे आसपास प्रति दिन देखने में आते हैं। बढ़ते हुए स्त्री स्वतंत्रता के युग को पुरुष परतंत्रता की ओर वाले युग के रुप में निरूपित किया जाना चाहिए।
अभी खबर छपी है की एक वर्ष पूर्व युवक को कुछ लोगों ने पकड़ा और पुलिस में दर्ज बयान बदलवाने के लिए अर्धनग्न कर बेल्ट से पीटा और भौंकने के लिए मजबूर किया, इधर मासूमों के साथ वहशी पना बताते हुए अक्सर आदमी पशु सा अधम हो जाता है। आदमी का कुत्ता करण तेजी से आयाम ले रहा है। कुत्ता एक वफादार पशु है, समझदार पशु है और आदमी एक बेवफा और पढ़ा लिखा होकर भी अनपढ़ और गंवार पशु है।कभी वह कुत्ते की तरह किसी दलित के मुंह पर मूत्र दान कर देता है और कभी दूसरे को भौंकने पर मजबूर कर देता है। उसकी अपनी दमित इच्छा को वह नाना प्रकार से दर्शाता है और अपने कृत्य पर हर्षाता है। ऐसा लगता है व्यवस्था से त्रस्त आदमी खुलकर भौंकना चाहता है, आदमी कुत्ता होना चाहता है।

परिचय :- अरुण कुमार जैन (आईआरएस)
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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