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गंध चिकित्सा से स्वास्थ्य पर्यटन विकास (उत्तराखंड उदाहरण)

भीष्म कुकरेती
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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आलेख – विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

मनुष्य विकास के कारण मनुष्य में अन्य जानवरों के गुण पाए जाने से गंध, सुगंध का अति महत्व है। हमारे पांच इन्द्रियों में सबसे अधिक महत्व गंध का है। हम जो पढ़ते हैं या देखते हैं वह कुछ दिनों में भूल जाते हैं, जिसे छूते हैं उसका स्मरण कुछ माह तक होता है जो सुनते हैं कुछ समय तक याद रखा जा सकता है किन्तु जो सूंघते हैं (भोजन स्वाद भी सूंघने से पैदा होता है) व सबसे अधिक समय तक याद रहता है। हमारे कम्युनिकेशन में ४५% कार्य सुगंध या गंध का हाथ होता है। हमारी किसी के प्रति चाहत, प्रेम, उदासीनता, घृणा में गंध इन्द्रिय का सर्वाधिक हाथ होता है। हम अन्य इन्द्रिय प्रबह्व को परिभासित कर सकते हैं किन्तु गंध का विवरण देना नामुमकिन ही सा है। किड़ाण या खिकराण को परिभाषित करना कठिन है।

गंध/सुगंध पर्यटन का मुख्यांग है

सामन्य पर्यटन में सुगंध या महत्वपूर्ण स्थान है। भोजन, बगीचों, नदियों के कीचड़, नदी किनारे, यात्रा माध्यम जैसे बस, कार, सड़क आदि में जब पर्यटक चलता है तो सबसे अधिक कार्य उसकी घ्राणेन्द्रियां कार्य करती है और अंत में पर्यटक स्थल या पर्यटन माध्यम (परिहवन) के प्रति छवि बनाने में सबसे अधिक प्रभावकारी गंध ही होती है क्योंकि गंध ही सबसे अधिक भावनाओं को प्रभावित करती है। पर्यटन में गंध अपनी भूमिका चुपचाप अदा करती रहती है। फास्ट फ़ूड के ठेले के आस-पास मूत्रालय या शौचालय में दृश्य इंद्री या श्रवण या स्पर्श इंद्री उतना प्रभाव नहीं डालती जितना कि घ्राणेन्द्रिय प्रभावित करती है। वेडिंग प्वॉन्टस अच्छा या बुरा आकलन या छवि बनाने में भी गंध महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बहुत साल पहले मेरे व्यापारी मित्र बद्रीनाथ यात्रा पर जाते थे और मंदिर के नीचे मूत्रालय से आती दुर्गंध का ब्यौरा देते नहीं भूलते थे।

गंध व गंध निर्माण माध्यम का घाल-माल
भारत गंध पर्यटन में विकसित है। उत्तराखंड में भी गंध पर्यटन विकसित है व उत्तराखंड राज्य ने ऐरोमा पर्यटन को गंभीरता से लिया है। किन्तु गंध पर्यटन व पुष्प पर्यटन में घालमेल है। यूरोप में फ़्रांस इत्र /परफ्यूम फैक्ट्रियों के दर्शन को गंध पर्यटन मानता है तो उत्तराखंड बुग्याळों, बगीचों व सुगंध बिखेरने वाले पेड़ पौधों की यात्रा को ऐरोमा टूरिज्म कहता है। बुल्गारिया गुलाब विक्री को दृश्य व गंध पर्यटन नाम देता है। बुल्गारिया में गुलाब के बगीचा भ्रमण व गुलाब जल विक्री /खरीदी वास्तव में दृश्य व गंध पर्यटन का मिश्रित रूप है। किन्तु परफ्यूम फैक्ट्री टूर केवल गंध टूर है।

गंध पर्यटन व गंध चिकित्सा पर्यटन एक दूसरे के पूरक भी हैं
देखा जाय तो गंध पर्यटन वास्तव में सुगंध चिकित्सा को प्रभावित करता है और इन्हे अलग करना काफी कठिन है।
गंध पर्यटन व गंध चिकित्सा पर्यटन दोनों बड़ी तेजी से विकसित हो रहे हैं और उन्नति के पथ पर हैं।
फूलों की घाटी टूर पुष्प (दृश्य), गंध टूर है किंतु ठंठोली (मल्ला ढांगू) में किसी जुकाम ग्रसित पर्यटक द्वारा भुने भट्ट, भुने टांटी का भाप लेना वास्तव में गंध चिकित्सा पर्यटन होगा। जुकाम या नया रोग में बहुत बार वैद्य या पारम्परिक चिकिस्तक किसी पत्ती, जड़ का रस या गंध नाक में चुआता है तो वह गंध या रस चिकित्सा कहलाया जाएगा। जब यदि कोई प्रवासी ऊमी (कच्चे गेंहू का भूनना) बुकाने गाँव जाय तो वह भोजन या गंध पर्यटन कहलाया जायेगा किन्तु वही प्रवासी जब भट्ट, टांटी आदि बीज भाप लेने गाँव जाय तो व गंध चिकित्सा पर्यटन कहलाया जायेगा। नागपुर में कोई पर्यटक संतरे लेने जाय तो वह फल टूरिज्म हुआ किन्तु जब संतरे के तेल /गंध से रोग निदान हेतु जाय तो व गंध चिकित्सा पर्यटन कहलाया जायेगा।

होटलों, दुकानों /मॉल्स में सुगंधित सुगंध छोड़ी जाती है यह व्यापर का अंग है जिसमे सुगंध ग्राहकों के भावनाओं से लाभ उठाने हेतु किया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा में कई जड़ी बूटियों का भाप दिया जाता है यह गंध चिकित्सा प्राकृतिक चिकित्सा पर्यटन का अभिन्न अंग है। भांग बीजों को गरम कर भाप लेना भी गंध चिकित्सा है और यदि प्रोटान होता है तो ऐसे पर्यटन को गंध चिकित्सा पर्यटन नाम दिया जाता है।भूत भगाने मिर्च को जलाकर रोगी को धुंवा सुंघवाना भी गंध चिकित्सा है इसी तरह कई तरह के धुंवा सुंघवाना भी गंध चिकित्सा के प्रकार हैं।

गंध चिकित्सा पर्यटन लाभ

सुगंध अथवा गंध चिकित्सा एक वैकल्पिक चिकित्सा है जिसमे व्यापार में दिन प्रतिदिन विकास हो रहा है और बज़ार भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणी है कि २०२५ तक यह व्यापर दुगना हो जायेगा।

गंध चिकित्सा से निम्न मुख्य लाभ हैं जो पर्यटनगामी हैं –
१- तनाव दूर करने में सहायक- सुगंध में वनस्पति टेल मुख्य कारक है और कई वनस्पति टेल तनाव दूर करने में सफल होते हैं।
२- विषाद, उदासी निवारण- बहुत से तैल सुगंध उर्जाकारक होते हैं जो दबाब, विषाद व उदासी दूर करने में लाभकारी होते हैं।
३- कई तैल या सुगंध स्मरण शक्ति वृद्धिकारक हैं और बुढ़ापे में लाभकारी होते हैं डिमेंटिया या अल्जिमेर जैसी बीमारियों को भगाने में कामगार सिद्ध होते हैं। विद्यार्थियों हेतु भी लाभकारी होते हैं।
४- यौवन भावना जागरण या यौवन अनुभव हेतु गंध शरीर में उत्तेजना या ऊर्जा भरने में कामयाब नुस्खा है। इसीलिए इत्र तेल फुलेल की इतनी बिक्री होती है।
५- कई तेल व तेल सुगंध घाव भरने व घाव छाप भरने में लाभकारी हैं।
६- सरदर्द व अधकपाळी दूर करने में तेल प्रयोग होते हैं।
७- निद्रा नियंत्रण- कई तेल निद्रा नियंत्रण में लाभकारी होते हैं।
८- कई तेल शरीर की प्रतिरोधक शक्ति वृद्धिकारक हैं।
९- कई प्रकार के दर्द भगाने में सहायक
१०- भारतीय आयुर्वेद अनुसार कई तेल या सुगंध पाचन शक्ति वृद्धिकारक होते हैं इसीलिए भारत में प्राचीन काल से ही मसालों के उपयोग पर बल दिया गया है।

सुगंध चिकित्सा बाजार का उज्वल भविष्य

अरोमाथैरेपी से चिकित्सा लाभ जन जाग्रति के कारण सुगंध चिकित्सा बाजार दिन प्रतिदिन प्रगति कर रहा है साथ-साथ में ऐरोमाथिरैपी में प्रयोग होने वाले उपकरणों का बजार भी प्रगति पथ पर है।
पी ऐंड ऐस रिसर्च संस्थान की एक रिपोर्ट अनुसार जागतिक ऐरोमाथिरैपी बाजार सन २०१७ में US$ १.७ बिलियन्स का था और ग्रैंड व्यू रिसर्च कम्पनी अनुसार यह मार्किट बढ़कर २०२५ में US $ २.३५ बिलियन्स तक पंहुच जायेगा।

सुगंध चिकित्सा प्रगति के मुख्य चालक या कारण –

उपभोक्ताओं की आय वृद्धि व विभिन्न माध्यमों के प्रवेश से प्राकृतिक चिकित्सा प्रति जन जागरण
२०१६ में प्राकृतिक चिकित्सा के प्रति जान जागरण के कारण सुगंध चिकित्सा में संतुलित नहीं अच्छी प्रगति हुयी
इसी तरह सुगंध चिकित्सा उपकरण बिक्री में भी अच्छी खासी प्रगति हुयी तनाव व दबाब दूर करने हेतु प्राकृतिक तैल चिकित्सा की भागीदारी सबसे अधिक रही और भविष्य में भी तनाव दूर करने , आराम प्राप्ति हेतु प्राकृतिक तैल /सुगंध का उपयोग बढ़ेगा।
त्वचा (क्रीम्स आदि) व केश सुरक्षा हेतु भी तैल या सुगंध चिकित्सा वृद्धि कारक है और भविष्य उज्वल है।
बाल/चिल्ड्रन चिकित्सा व गर्भवती महिला चिकित्सा में प्राकृतिक चिकित्सा वृद्धि भी तैल चिकित्सा वृद्धि कारक है इसी तरह सामन्य स्पा या आयुर्वेद स्पाओँ में प्राकृतिक तैल से मालिश के महत्व ने ऐरोमाथिरैपी बजार बढ़ाया प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र में बाबा रामदेव जैसे विपणनकर्ताओं के बजार में आने से भी ऐरोमाथिरैपी को बल मिला है। जब कोलगेट सरीखे आयुर्वेद व परम्परा विरोधी ब्रैंड को हर्बल टूथ पेस्ट में उतरना पड़े तो समझ लीजिये प्राकृतिक चिकित्सा में क्रान्ति आने के अवसर बढ़ गए हैं।

आयुर्वेद औषधि उपयोग वृद्धि – बहुत सी औषधियों में तैल अवयव होने के कारण भी बजार बढ़ा है। प्राकृतिक केश तैल उपयोग में रचनाधर्मिता के आने से भी प्राकृतिक केश तैल बजार बढ़ा है, भारत जैसे देश में मसालों में तैल उपयोग वृद्धि भी एक कारण है क्योंकि भारत उप महाद्वीप में मसालों की छवि औषधि रूप में प्राचीन काल से ही है यह छवि अन्य क्षेत्रों में भी फ़ैल रही है।
गंध चिकित्सा की मुख्य विधियां-

गंध चिकित्सा की मुख्य निम्न विधियां हैं –

इत्र
तेल को या तो अल्कोहोल, पानी में मिलाकर या कमरे में फैलाकर प्रयोग होता है या कपड़ों में लगाकर रुमाल या टिस्यू पेपर तेल को रुमाल या टिस्यू परपर पर लगाकर
भाप
तेल या गंध उत्पादन करने वाले वस्तु को गरम पानी या गरम कोयले में रखा जाता है जैसे भट्ट, बसिंगा बीज आदि
तेल मालिश
तेल व अन्य औषधि से मालिश करना
जलयुक्त गंध चिकित्सा विधियां
जल में तेल मिलाकर स्नान
जल स्रोत्र में तेल मिलाकर स्नान
तेलयुक्त जल में हस्त स्नान/सिकाई
तेलयुक्त जल में पद स्नान/सिकाई

कमरा माध्यम में
कोठरी में तेल या तेल अवयव बीज, जड़, पत्ती, डंठल, तना आदि धुंआ, दिवळ छिल जलाकर। मछरों को भगाने हेतु कड़ी पत्ता या डैन्कण, नीम पत्ती जलाकर धुंवा, गुपळ-उपले जलाकर कीड़े या, शाहू/सौलू, बाग़, सांप, चूहे भगाना भी गंध चिकित्सा ही है

हवन विधि द्वारा
अगरबत्ती, धूपबत्ती जैसे जलाकर
स्प्रे मारकर
मोमबत्ती या दिए के तेल में गंध अवयव रखकर
बल्ब में तेल लगाकर
फैन के ऊपर तेलयुक्त रुमाल रखकर
रेडियेटर, कूलर व एयर कंडीशनर फ़टका मार कर गंध प्रसार

उत्तराखंड राज्य सुगंध पर्यटन प्रति सचेत है-

सुगंध पर्यटन प्रकृति पर्यटन या इको टूरिज्म का अभिन्न अंग है। उत्तराखंड राज्य ने सुगंध पर्यटन के महत्व को समझा और सुगंध पर्यटन विकास हेतु विशेष कदम उठाये हैं जो भविष्य में काफी लाभदायी साबित होंगे। उत्तराखंड राज्य ने सुगंध पर्यटन को केरल के मसाला पर्यटन जैसे विकास योजनाएं निर्मित की हैं।

उत्तराखंड में सुगंध पर्यटन विकास में निम्न कारक महत्वपूर्ण है –

* उत्तराखंड में १७९ विशेष व सुगंध पादप प्रजाति हैं जो सुगंध पर्यटन विकास के लिए अहम् हैं
* दालचीनी पादप विशेष महत्वपूर्ण पादप है
* उत्तराखंड का सुगंध तेल बज़ार में २००२ से २०१७ तक २७% विकास हुआ
* उत्तराखंड में १०९ सुगंध स्थल हैं जो पर्यटक गामी हैं
* उत्तराखंड में१७८ जगह डिस्टलरी हैं जो सुगंधित तेल निथारन करते हैं
*चिकित्सा व सपा हेतु ६०० तन तेल उत्पाद होता है और१८०० कृषक इस क्षेत्र में कार्यरत हैं

उत्तराखंड राज्य ने निम्न चार स्थलों कोसुगंध केंद्रित ऐरोमा टूरिस्ट स्थल हेतु योजना बनाई हैं-

१- परसाड़ी- चमोली गढ़वाल
२- भुजीघाट नैनीताल
३- गवाड़ी- पौड़ी गढ़वाल
४- पीड़ा पौड़ी गढ़वाल
५- बिहारी गढ़ हरिद्वार

प्राइवेट पब्लिक भागीदारी तर्ज पर उपरोक्त स्थलों को सुगंध पर्यटक स्थल विकसित करने की योजनाएं हैं और निवेशकों हेतु कई इन्सेन्टिव्ज का प्रवधान है। जैसे होटल, एडवेंचर टूरिज्म सुविधा व अन्य सुविधाएं जुटाने हेतु इन्सेन्टिव्ज आदि-आदि।

इसके अतिरिक्त निम्न इंसेटिव्ज भी दिए जा रहे हैं –
१- सुगंधित पादप उत्पादन हेतु ५०% सब्सिडी
२- डिस्टलरीज हेतु पहाड़ों में ७५% व मैदान में ५०% सब्सिडी
३- ५० पादपों व तैलों पर एमएसपी याने मिनिमम स्पोर्ट प्राइस
(राज्य द्वारा इन्वेस्टमेंट मेले हेतु तैयार की गए ब्रौचर आधार पर)

बुल्गारिया गुलाब मेले से सुगंध पर्यटन विकास –

बुल्गैरिया अपने प्राचीन संस्कृति हेतु ही नहीं अपितु गुलाब तेल हेतु जग प्रसिद्ध है। बुल्गारिया का सर्वोत्तम तेल उत्पादक गुलाब प्रजाति ‘दमास्क रोज’ ने बुल्गारिया की अप्रतिम ख्याति प्रदान की है। दुनिया भर के अधिकतर देस बुल्गारिया का गुलाब अतर आयात करते हैं।

बुल्गारिया में दमास्क रोज या गुलाब कजानलाक घाटी क्षेत्र में सत्तरहवीं सदी से उगाया जाता है। रोजा दमासिना प्रजाति सीरिया/ ईरान से लाया गया था और कजानलाक घाटी का हो गया है। कजानलाक घाटी दो बालत्क पर्वत श्रेणियों मध्य घिरे होने से गुलाब शीत से बच जाते हैं व जून में वर्षा होने से क्षेत्र को जल मिलता है। गुलाब हतु यह क्षेत्र सर्वश्रेष्ठ भौगोलिक क्षेत्र है। बुल्गारिया का गुलाब अतर निर्माण में डबल डिस्टिलेशन विधि सत्तरहवीं सदी (१६८०) में शुरू हुआ और कजानलाक का गुलाब अतर तब से से ही जग प्रसिद्ध होने लगा था। इस घाटी में प्रत्येक मवासा /परिवार गुलाब अतर व्यापार से जुड़ा है गुलाब इस घाटी की जिंदगी है।

गुलाब पंखुड़ियों का निकालने का कार्य मध्य मई और जून से शुरू होता है। पंखुड़ियां हाथ से सुबह सुबह ४ बजे से १० बजे तक ही निकाली जाती हैं व तब डिस्टलरी भेज दी जाती है। रोज रिसर्च संस्थान पौध प्रबंध करता है। पंखुड़ियां निकालने से पहले जून के प्रथम सप्ताह में इस घाटी में सन १९०३ से प्रति वर्ष रोज फेस्टिवल का आयोजन होता है। गुलाब मेले में कई पर्यटन आकर्षक कार्य क्रम शामिल होते हैं और सारे कार्यक्रम सारे विश्व के पर्यटकों को बुल्गारिया आने को विवस करते हैं। अतर व्यापारी तो सत्तरहवीं सदी से ही बुगारिया पर्यटन करते ही रहते हैं।

गुलाब मेले के कुछ आकर्षण हैं –

गुलाब पंखुड़ी निकालने के पूजा /कर्मकांड कार्यक्रम
गुलाब खेतों का भ्रमण
गुलाब अतर डिस्टलरी भ्रमण
हर गाँव में किसानों का गीत संगीत युक्त प्रोसेसन
लोक संगीत के के कई कार्यक्रम
घाटी के स्थानीय कुटीर उद्यम वस्तुओं की प्रदर्शनी
कला प्रदर्शनियां
वाइन टेस्टिंग प्रदर्शनी
रोज क्वीन प्रतियोगिता
रोज म्यूजियम दर्शन
५००० वर्ष प्राचीन ऐतिहासिक स्थल दर्शन
स्थानीय सांस्कृतिक व भोजन पर्यटन के कई कार्यक्रम

बुल्गारिया का रोज फेस्टिवल से बुल्गारिया में पर्यटन को विकसित करने का ही नहीं दुनिया में बुल्गारियाई गुलाब अतर की प्रसिद्धि कायम रखने का सर्वोत्तम माध्यम है।

गुलाब अन्वेषण पर विचार चर्चा
फ्रांस का ग्रास /ग्रासो : सुगंध पर्यटन का श्रेष्ठ उदाहरण –

फ़्रांस में ग्रास /ग्रासो एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है कि किस तरह एक शहर या क्षेत्र किसी देस को प्रसिद्धि दिला सकता है और उद्यम व पर्यटन कैसे एक दुसरे के पूरक व भागिदार हो सकते हैं।

ग्रास /ग्रासो फ़्रांस आज दुनिया में सुगंध परफ्यूम राजधानी है। यहां की जलवायु सुगंधित पादप उत्पादन हेतु बहुत लाभकारी है। ग्रास अठरावीं सदी से ही परफ्यूम कैपिटल से मशहूर है। ग्रास की पर्फ्यूमरियां सुगंधित पदार्थ फैक्ट्रियां सुगंधित पदार्थ निर्यातक ही नहीं अपितु पर्यटनगामी भी हैं। दुनिया भर के आयात कर्ता व पर्यटक ग्रास आते हैं। ग्रास आल्प्स पहाड़ियों मध्य बसा छोटा क्षेत्र है।

ग्रास की कहानी उद्यम कहानी

ग्रास सोलहवीं सदी में चमड़ा उद्यम हेतु प्रसिद्ध क्षेत्र था। चमड़ा कमाई कार्य में दुर्गंध होना लाजमी है तो उद्यमियों ने इस क्षेत्र में सुगंध छोड़ने वाले पौधों को चमड़ा कमाई के दुर्गंध हटाने हेतु इतर बनाना शुरू किया। एक ओर चमड़े के कारखाने व साथ साथ क्षेत्रीय पादपों से सुगंधित तेल उत्पादन का उद्यम फलने फूलने लगे। धीरे-धीरे चमड़ा उद्यम के स्थान पर सुगंध तेल प्रसिद्ध होने लगा और उद्योगपतियों ने चमड़ा उद्योग छोड़ इतर उद्यम अपनाना शुरू किया और अंत में चमड़ा उद्यम बंद ही हो गए। ग्रास क्षेत्र के फूल विशेष सुगंध देते है जिससे ग्रास का इतर प्रसिद्ध हो गया। अठारवीं सदी से ही ग्रास इतर राजधानी बन गया। धीरे-धीरे इतर निर्माताओं ने अन्वेषण से उच्च गुणवत्ता के इतर बनाना शुरू किया जो मंहगा भी था।

ग्रास को टूरिस्ट स्थल बनाने की कहानी

१९७० में प्रसिद्ध इतर ब्रैंड के संस्थापक यूजीन फ़क्स के नाती कला प्रेमी जीन्स फ्रैंकोइस कोस्टा ने इतर इतिहास संबंधी वस्तुओं का म्यूजियम खोला और बाद में ग्रास के क्राफ्ट्स व सांस्कृतिक पहचान वाली वस्तुओं जैसे साबुन, मोमबत्ती, डैकोरेटिव वस्तु आदि का म्यूजियम खोले। इससे व्यवसायिक स्तर पर इतर पर्यटन की शुरुवात हुयी।

जीन्स की अगली पीढ़ी ने भी सांस्कृतिक वस्तु व इतर इतिहास वस्तु प्रदर्शनी को आगे बढ़ाया। देखा-देखी ग्रास क्षेत्र में इस तरह के म्यूजियम/स्टोर्स खुलने लगे।

फ्रागोनार्ड म्यूजियम

यूजीन परिवार द्वारा स्थापित फ्रागोनार्ड म्यूजियम में इतर का ३००० वर्ष पुराने इतर इतिहास से लेकर आधुनिक इतर निर्माण का इतिहास दिखाया जाता है। साथ-साथ में पर्यटक अपने हिसाब से अपने लिए इतर भी निर्मित कर सकते हैं।

ग्रास का इतिहास भी पर्यटक आकर्षण केंद्र है।
प्रत्येक परफ्यूम फैक्ट्री पर्यटकों को फैक्ट्री दिखाती हैं।
ग्रास में अंततर्राष्ट्रीय स्तर के होटल , परिहवन सुविधाएँ उपलब्ध हैं
अगस्त में लगने वाला सुगंध मेला याने परफ्यूम फेस्टिवल भी पर्यटकन मध्य प्रसिद्ध है

सुगंधित औषध पादप उत्पादन हेतु विशेषज्ञों की राय व रणनीति प्रतिपादन-

उत्तराखंड राज्य विज्ञान व तकनीक परिषद ने विज्ञानं धाम झझरा देहरादून में आठवीं राज्य विज्ञान व तकनीक कॉंग्रेस सेसन में २६ दिसंबर २०१३ में विशेषज्ञों की एक बैठक बुलाई थी जिसमे उत्तराखंड सुगंधित औषधि पादप पर गहन चर्चा हुए। चर्चा में गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूतपूर्व कुलपति डा पुरोहित व अन्य अति विशिष्ठ विशेषज्ञों ने भाग लिया और उस चर्चा का प्रकाशन भी किया (विजय कुमार ढौंडियाल आईएएस मुख्य समापदक, मंजू सुन्दरियाल सम्पादक)

निम्न सुझाव इन विशेषज्ञों ने दिए –

उत्तराखंड राज्य हेतु सुझाव –

१- अधिक ध्यान केंद्रित रूप में समग्र /इंटीग्रेटेड रूप से औषधि व सुगंधित पादपं में अन्वेषण हो
२- राज्य सरकार को सुगंधित औषधि पादप अन्वेषण मो प्राथमिकता देने की अति आवश्यकता है
३- औषध पादप उत्पादन में क्वालिटी योजना की भारी आवश्यकता
४- सुगंध औषधि पादप आधारित उद्यमों का त्वरित विकास
५- उन उद्यमों को प्राथमिकता देना जो उन फूलों से उद्यम लगाएं जिन फूलों की अनदेखी की गयी है जैसे बुरांश
६- औषधि पादपों हेतु मेगा मार्केट व मैगा केंद्र निर्माण याने अंतर्राष्ट्रीय बज़ार निर्माण करना
७- राज्य में ग्रेडिंग, छंटाई व पैकिंग की व्यवस्था
८- राज्य में क्षेत्रीय लैबोरेट्रीज स्थापना
९- वन व कृषि उत्पाद में सामजस्य, राज्य वन व पंचायत वनों में औषध उत्पादन की व्यवस्था
१०- जागरण कार्यक्रम
११- आयुर्वेद औषधि में क्लिनिकल स्टैंडर्डाइजेशन की पराम् आवश्यकता
१२- कम खपत या निम्न श्रेणी पादपों को महत्व देना
१३- औषध पापड़ उत्पादन को पर्यटन उद्यम के साथ जोड़न –

-हाई ऐल्टीच्यूड हर्बल गार्डन निर्माण
-पर्यटक स्थलों में औषधि पादपों की प्रदर्शनियां
-औषधि पादप टूर विकास

(UPCOST की aromatic -plants वेब साइट से साभार (बिना आज्ञा के)

चकबंदी, चकबंदी और केवल चकबंदी ही विकल्प है ! –

सुगंध चिकित्सा पर्यटन विकास हेतु सुगंधित औषध पादप उत्पादन आवश्यक है। ९०% भूमि प्रवासियों की मिलकियत है अतः यदि सुगंधित औषध पादप की कृषि करनी है तो प्रवासियों की भागीदारी आवश्यक है। यह भी एक कटु सत्य है कि अब प्रवासियों का घर बौड़ाइ मुश्किल ही है। एकमात्र विकल्प है कि सुगंधित औषधि पादप या औषधि पादपों की कृषि हेतु प्रवासी अपनी भूमि अधा -त्याड़ में खेती करने दें (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हेतु भी बांज पड़े खेतों को सुधारना कठिन हो चला है तो यह तभी संभव है जब कॉन्ट्रैक्टर को बड़े प्लॉट भूमि कृषि हेतु उपलब्ध हो। यह भी तभी संभव है जब पहाड़ों में चकबंदी हो।

बिना प्रवासियों की भागीदारी व चकबंदी के औषध पादप कृषि का सपना भी नहीं देखा जा सकता और उसके लिए चकबंदी ही एकमात्र विकल्प है। चकबंदी व कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पिछले अध्यायों में गहन चर्चा हो चुकी है।

Copyright @Bhishma Kukreti
जिन्हे मेल अरुचिकर लगे वे सूचित कीजियेगा

परिचय :-  भीष्म कुकरेती
जन्म : उत्तराखंड के एक गाँव में १९५२
शिक्षा : एम्एससी (महाराष्ट्र)
निवासी : मुम्बई
व्यवसायिक वृति : कई ड्यूरेबल संस्थाओं में विपणन विभाग
सम्प्रति : गढ़वाली में सर्वाधिक व्यंग्य रचयिता व व्यंग्य चित्र रचयिता, हिंदी में कई लेख व एक पुस्तक प्रकाशित, अंग्रेजी में कई लेख व चार पुस्तकें प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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