प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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(१)
करना मत तुम भेद अब, बेटा-बेटी एक।
बेटी प्रति यदि हेयता, वह बंदा नहिं नेक।।
वह बंदा नहिं नेक, करे दुर्गुण को पोषित।
बेटी हो मायूस, व्यर्थ ही होती शोषित।।
दूषित हो संसार, पड़ेगा हमको भरना।
संतानों में भेद, बुरा होता है करना।।
(२)
बेटा कुल का नूर है, तो बेटी है लाज।
बेटा है संगीत तो, बेटी लगती साज़।।
बेटी कभी न बोझ, बढ़ाती दो कुल आगे।
उससे डरकर दूर, सदा अँधियारा भागे।।
जहाँ पल रहा भेद, वहाँ तो मौसम हेटा।
नहिं किंचित उत्थान, जहाँ बस भाता बेटा।।
(३)
गाओ प्रियवर गीत तुम, समरसता के आज।
सुता और सुत एक हैं, जाने सकल समाज।।
जाने सकल समाज, बराबर दोनों मानो।
बेटी कभी न बोझ, बात यह चोखी जानो।।
संतानों से नेह, बराबर उर में लाओ।
फिर सब कुछ जयकार, अमन के नग़मे गाओ।।
(४)
जाने कैसी भिन्नता, मान रहे हैं लोग।
बेटा-बेटी भेद का, पाले बैठे रोग।।
पाले बैठे रोग, बेटियाँ होतीं आहत।
बेटी कभी न बोझ, करो नहिं ख़ुद को तुम क्षत।
कहता सच मैं आज, भले कोई नहिं माने।
बेटा-बेटी एक, सकल यह युग अब जाने।।
(५)
अँधियारा छाने लगा, भरी दुपहरी आज।
सामाजिक अपराध का, करते हम सब काज।।
करते हम सब काज, भेद संतति में देखें।
बेटी को तो बोझ, मूर्ख ही केवल लेखें।।
दोनों एक समान, सदा कुल का उजियारा।
मिलकर करते दूर, आज घर का अँधियारा।।
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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