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क्या वो दिन आयेंगे …?

विश्वम्भर पाण्डे “व्यग्र”
गंगापुर सिटी (राजस्थान)

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मैं
सदियों से शोभा थी
तेरे आंगन की
तू सजाता/सॅवारता/बचाता आया
दुनियां के हर संताप से
पर, आज मैं
खरपतबार समझ,
आंगन से हटा दी गई
जैसे जन्म से पहले
नष्ट कर दी जाती बिटिया
और बिसार दी गई ‘वो रीति’
दकियानूसी समझ।
मेरा स्थान
पा लिया है अब
उन गंधहीन ‘कैक्टसों’ ने
जिन्हें, तू पाल रहा है,
आज सुपुत्रों की तरह,
जो दे नहीं सकते,
तुझे सुवास,
सिवाय काँटों के।
मैंने तुझे पहचान दी
तेरी बचाई जान
जिसे तू जानता
और जानता विज्ञान
पर हाय! इस बात को
तू कब समझेगा?
हटाकर कटीले झाड़
मुझे फिर से आंगन में रोपेगा!
सच बता, क्या वो दिन आयेंगे??
जब मैं आंगन में,
तेरे लहलहाऊंगी
और एक बिटिया की तरह
सुखद अहसास कराऊँगी…

परिचय :-  विश्वम्भर पाण्डे “व्यग्र”
निवासी : गंगापुर सिटी (राजस्थान)
प्रकाशन : देश-विदेश के प्रमुख समाचार-पत्र व पत्रिकाओं में रचनाओं का अनवरत प्रकाशन।
प्रमुख कृतियाँ : ‘कौन कहता है’ (२०१७), ‘पाण्डे जी कहिन’ (२०१८), ‘मौन क्यूँ हो’ (२०२०)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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