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हिंदी का उत्थान करोगे …

राम बहादुर शर्मा “राम”
बारा दीक्षित, जिला देवरिया (उत्तर प्रदेश)
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हिंदी है इस देश की भाषा,
सर्वाधिक है बोली जाती,
किंतु विडंबना यह आज भी,
क्षेत्रीयता में तोली जाती।

पूछता हूँ, देश के कर्णधारों से,
क्या राष्ट्रभाषा का
ऐसा ही सम्मान करोगे?
कैसे हिंदी का उत्थान करोगे?

पिचहत्तर साल व्यतीत हो गए,
पाये अपनी आजादी को,
किंतु कभी क्या सोचा तुमने,
गौरव देना है हिंदी को।

अपनी अंग्रेजी सोच का तुम,
जो नहीं कभी बलिदान करोगे,
कैसे हिंदी का उत्थान करोगे?

माँ को मम्मी डैड पिता को,
चाचा ताऊ अंकल हैं,
चाची बन कर आंट घूमतीं,
देसी के ऊपर डंकल हैं।

गैरों पर अपनों से बढ़कर,
जब ऐसा अभिमान करोगे,
कैसे हिंदी का उत्थान करोगे?

भारतेंदु को भूल गए तुम,
भूले तुम मीरा दिनकर को,
सूर कबीर तुलसी को भूले,
बस याद रखा तो मिल्टन को।

हिंदी के गौरव को भुला,
क्या इनका ऐसा अपमान करोगे?
कैसे हिंदी का उत्थान करोगे?

हिंदी पखवाड़ा हो मनाते,
पन्द्रह दिन तक राग सुनाते,
शेष बचे तीन सौ पचास दिन,
अंग्रेजी से काम चलाते।

सोचो क्या इससे मिल पाएगा,
लक्ष्य जो तुम संधान करोगे?
कैसे हिंदी का उत्थान करोगे?

माँ समान यह हिंदी भाषा,
सब भारतीय भाषाएं मौसी हैं,
प्रथम दृष्टया भेद हो कितना,
मूल में सब एक जैसी हैं।

पर अंग्रेजी जो एक विदेशी,
क्या इसका माँ से बढ़कर सम्मान करोगे?
कैसे हिंदी का उत्थान करोगे?

अपने संस्कृत जुड़ी है इससे,
इसमें भरा अपनापन है,
इसका गौरव कब दिलवाओगे?
कब भरोगे जो खालीपन है?

रौंद रही पाश्चात्य संस्कृति,
कब अपने पर अभिमान करोगे?
कैसे हिंदी का उत्थान करोगे?

सुंदर बिंदी हिंदी प्यारी,
भारत माता की शोभा है,
देव भाषा संस्कृत की दूहिता,
भारतीय संस्कृत के पुरोधा है।

जहां से बिछड़ी वहीं सजा कर,
माता का जब मान करोगे,
तब हिंदी का उत्थान करोगे।

हिंदी से अब छल ना हो,
हमको यह निश्चय करना है,
तन भी मन भी निज जीवन भी,
सर्वस्व समर्पित करना है,

पखवाड़े को विस्तारित कर,
जीवन भर हिंदी में काम करोगे,
तब हिंदी का उत्थान करोगे।

सबको दो सम्मान यथोचित,
जो जैसा अधिकारी हो,
किंतु रहे बस ध्यान में इतना,
कहीं यह अपनों पर ना भारी हो।

यह विचार जब रखोगे दिल में,
और जब राष्ट्रभाषा का सम्मान करोगे।
तब हिंदी का उत्थान करोगे।

बस एक दीप है मुझे जलाना,
उसी से कई दीप जल जाएंगे,
फैलेगी एक नई रोशनी,
हिंदी को सम्मान दिलाएंगे।

ऐसा रख कर्तृत्व भाव जब,
मन से दृढ़ बलवान बनोगे,
तब हिंदी का उत्थान करोगे।

छल छद्म द्वेष पाखंड युक्त,
उन छलियों से सावधान रहो,
जो हिंदी का गौरव लूट रहे,
विश्वास तनिक ना उनपे करो,

हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने के लिये,
अपने स्तर पर काम करोगे।
तब हिंदी का उत्थान करोगे देखो।

“राम”यह महती जिम्मेदारी,
अपने कंधों पर आई है,
जननी समान इस भाषा ने,
हम से उम्मीद लगाई है।

हिंदी का गौरव अपना गौरव,
मन में इसका जब ध्यान करोगे।
तब हिंदी का उत्थान करोगे।

ना कभी भूल से इसे समझना,
अंग्रेजी से द्वेष मुझे,
माँ की जगह कोई और है,
बैठी बस इसका है क्लेश मुझे।

इसी क्लेश को समझ कर अपना,
जीवन में हिंदी का मान करोगे।
तब हिंदी का उत्थान करोगे।

पखवाड़े को वर्ष बनाओ,
हिंदी को सम्मान दिलाओ,
आए जो भी बाधा इसमें,
दृढ़ इच्छा से उसे मिटाओ।

जय हिंद की भाषा हिंदी की,
मनसे जय जय हिंदुस्तान कहोगे,
तब हिंदी का उत्थान करोगे।
सचमुच हिंदी का उत्थान करोगे।।

परिचय :- राम बहादुर शर्मा “राम”
व्यवसाय : शिक्षण कार्य
पद
: प्रधानाध्यापक 
कार्यस्थल :
 केन्द्रीय विद्यालय रायबरेली, (उत्तर प्रदेश)
निवासी :
ग्राम बारा दीक्षित, जिला देवरिया (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा :
बी.एस-सी (जीवविज्ञान), बी.एड., एम.ए. (हिंदी साहित्य)
घोषणा
 पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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